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गणेश चतुर्थी को चांद दर्शन करने से लग सकता हैं झूठा कलंक और पाप, दूसरे...

गणेश चतुर्थी को चांद दर्शन करने से लग सकता हैं झूठा कलंक और पाप, दूसरे की छत पर 5 पत्थर फेंकने होंगे

अरे भई ये इंडिया है यहाँ अलग अलग तरह की मान्यताए होती है। हमारे देश में काफी सालों से कुछ मान्यताएं चली आ रही है और आज भी उनका पालन हो रहा है. आपने भी ऐसी कई मान्यताओं को माना होगा जैसे बायीं आँख फड़के तो कुछ अशुभ होने वाला है. अंत्येष्टि से आकर नहाने की प्रथा. कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते है तो कुछ इसे सचाई। हमारे बड़े बुजर्ग भी हमे बात बात पर टोकते है. और अगर हमारे बड़े कुछ कह रहे है तो सही ही होगा।आज हम ऐसी ही एक धार्मिक मान्यता की बात करेंगे जिसके अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि यानी गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए।

गणेश चतुर्थी के दिन चाँद को नहीं देखना चाहिए

यानि गणेश चतुर्थी के दिन चाँद को नहीं देखना चाहिए। यदि भूल से गणेश चतुर्थी के दिन आपने चांद का दर्शन कर लिया तो आप के ऊपर झूठा कलंक लगने की मान्यता भी है। और आप पर पाप भी लगता हैं, साथ ही झूठे आरोप बीच में पड़ सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस कलंक से बचने के लिए दूसरे की छत पर पांच पत्थर फेंकने चाहिए। आप लोगो को ये थोड़ा फनी जरूर लगा होगा पर यह पुराणी मान्यता है। तो चलिए जानते है कि इस दिन को पत्थर चौथ और कलंक चतुर्थी क्यों कहा जाता है।

चंद्रदेव ने श्राप निष्फल होने का वरदान मांगा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान गणेश जी अपनी पसंदीदा मिठाई खा रहे थे। तभी वहां से गुजर रहे चंद्र देव भगवान गणेश के पेट और हाथी के सूंड जैसे मुख देख कर हंसने लगे और अपनी सुंदरता पर घमंड करने लगे। फिर क्या भई हमारे गणेश जी इस उपहास से नाराज होकर चंद्रदेव को उनके स्वरूप होने और सभी कलाएं नष्ट होने का श्राप दे देते है। साथ में यह भी कहा कि जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा उसे कलंकित होना पड़ेगा। तब चंद्रदेव अपनी गलती का एहसास करते हुए भगवान गणेश की विधिवत पूजा करने लगे साथ ही अपनी भूल की क्षमा याचना करने लगे।चंद्र देव की पूजा और तब से भगवान गणेश प्रसन्न हो गए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। तब चंद्रदेव ने श्राप निष्फल होने का वरदान मांगा।

चतुर्थी के दिन ही मान्य होने का वरदान

भगवान गणेश ने श्राप वापस ना लिया बल्कि उसे सीमित कर दिया था और कहा था कि चंद्र दर्शन से कलंकित होने का श्राप सिर्फ इस चतुर्थी के दिन ही मान्य होने का वरदान दिया। यह घटना जिस दिन घटित हुई थी इस दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। बेशक आप लोग इसे अंधविश्वास कहे या कुछ और पर धार्मिक पुराणों में यही लिखा हुआ है।

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