Ranchhod Pagi Indian Army Unsung Hero गुजरात और पाकिस्तान की सीमा के पास रहने वाले ‘पगी’ या ‘पेजी’ एक खास समुदाय के लोग होते हैं। इनका काम पैरों के निशानों को पढ़ना होता है। ये लोग सिर्फ देख कर बता सकते हैं कि किसी इंसान की उम्र, वजन और वह कितनी दूर गया होगा। यही नहीं, ऊँट के पैरों के निशानों से भी पता लगा लेते हैं कि उस पर कितने लोग बैठे थे। भारतीय सेना और बीएसएफ इनकी इस खास कला का उपयोग बॉर्डर की सुरक्षा के लिए करती है।
रणछोड़ पगी,एक सच्चे देशभक्त की कहानी
रणछोड़भाई सवाभाई रबारी, जिन्हें सभी प्यार से ‘पगी’ कहते थे, का जन्म अब पाकिस्तान में मौजूद पीथापुर गांव में 1901 में हुआ था। बंटवारे के बाद वे भारत आ गए। 58 साल की उम्र में उन्हें बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक ने पुलिस गाइड बनाया। इसके बाद वे भारतीय सेना में स्काउट के रूप में शामिल हुए।
युद्ध में बहादुरी
1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में रणछोड़दास पगी की भूमिका बहुत अहम रही। एक बार उन्होंने अंधेरे में दुश्मन के 1200 सैनिकों के पैरों के निशान पढ़कर उनकी मौजूदगी का पता लगाया था। इस जानकारी की वजह से भारतीय सेना समय रहते कार्रवाई कर पाई और सैकड़ों सैनिकों की जान बच गई।
1965 के युद्ध में जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कच्छ के गांवों पर कब्जा कर लिया था, तब पगी ने छिपकर गांववालों और रिश्तेदारों से जानकारी जुटाई। उन्होंने रेगिस्तानी रास्तों का ऐसा सही अंदाजा लगाया कि भारतीय सेना अपने गंतव्य तक 12 घंटे पहले पहुंच गई।
सैम मानेकशॉ और पगी की दोस्ती
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ उन्हें बहुत मानते थे। उन्होंने ‘पगी’ के लिए सेना में एक खास पद बनवाया ‘पागी’, यानी पैरों के निशान पढ़ने वाला। एक बार तो उन्होंने हेलिकॉप्टर भेजकर रणछोड़ पगी को खास भोजन के लिए बुलवाया। जब उनका थैला हेलिकॉप्टर में छूट गया तो उसे वापस लाया गया। उसमें दो रोटियां, प्याज और गाठिया की सब्ज़ी थी। यही साधारण खाना सैम मानेकशॉ ने उनके साथ बांटकर खाया।
सम्मान और आखिरी विदाई
पगी को उनके योगदान के लिए संग्राम पदक, समर सेवा स्टार और पुलिस मेडल जैसे कई सम्मान मिले। बीएसएफ ने गुजरात के सुईगाम की एक पोस्ट का नाम ‘रणछोड़दास पोस्ट’ रखा और वहां उनकी मूर्ति भी लगाई गई। यह पहली बार हुआ था कि किसी आम नागरिक के नाम पर सेना की पोस्ट का नाम रखा गया हो।
रणछोड़ पगी, सीमाओं के रखवाले, पैरों के निशानों से दुश्मन की पहचान करने वाले अद्वितीय स्काउट थे। उनके अद्भुत हुनर ने भारतीय सेना को कई युद्धों में जीत दिलाई और सैकड़ों जानें बचाईं।
2009 में उन्होंने 108 साल की उम्र में सेना से सेवा निवृत्ति ली और 2013 में 112 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ।