Rahul Gandhi’s “Vote Theft” Controversy: उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर आरोप लगा है कि उन्होंने चुनाव आयोग (ECI) को बदनाम करने के लिए ‘वोट चोरी’ की साजिश रची। उन्होंने इसके समर्थन में कुछ दस्तावेज भी जारी किए थे। लेकिन अब खुद वही दस्तावेज उनके लिए परेशानी बन गए हैं। बुधवार, 10 सितंबर 2025 को यह सामने आया कि जिन फाइलों के आधार पर उन्होंने 7 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया था, वे दस्तावेज असल में म्यांमार में बनाए गए थे।
यह खुलासा सबसे पहले X हैंडल ‘खुरपेंच’ ने किया। सात पोस्ट की एक थ्रेड में उसने सबूत के साथ बताया कि दस्तावेज भारत में नहीं, बल्कि म्यांमार में तैयार किए गए थे। राहुल गांधी ने यह फाइलें अपनी वेबसाइट पर साझा की थीं, जिनमें ‘वोट चोरी का सबूत’ हाइपरलिंक भी था। गूगल ड्राइव पर ‘राहुल गांधी की प्रस्तुति’ नाम की तीन PDF फाइलें मिलीं, जो हिंदी, अंग्रेजी और कन्नड़ में थीं। ये वही दस्तावेज़ थे जिन्हें राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया था।
मेटाडेटा क्या होता है?
जाँच में खुरपेंच ने दस्तावेज़ का मेटाडेटा खंगाला। मेटाडेटा उस फाइल की जानकारी होती है, जो उसकी सामग्री से अलग होती है। इसमें फाइल बनाने वाले का नाम, समय, तारीख, आकार जैसी बातें दर्ज रहती हैं। मेटाडेटा की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि फाइल कब और कहाँ बनाई गई थी। जाँच में पाया गया कि राहुल गांधी की फाइल म्यांमार मानक समय (MMT) में तैयार की गई थी। जबकि भारत में बनी फाइलों का समय भारतीय मानक समय (IST) होता है। IST UTC+5:30 है, जबकि MMT UTC+6:30। इसका मतलब यह फाइल भारत में नहीं बनी थी।
तकनीकी गलती या साजिश?
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनाथ ने इस पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि यह टाइमज़ोन की गलती हो सकती है, जो सॉफ़्टवेयर की सेटिंग या Adobe की बग के कारण हुई होगी। उन्होंने कहा कि “एक घंटे का फर्क स्थान परिवर्तन का सबूत नहीं है।” लेकिन खुरपेंच ने इसका जवाब देते हुए कहा कि Adobe ऐसे बग तुरंत ठीक कर देता है और Adobe Illustrator से बनाई गई फाइल में ऐसी गलती संभव नहीं है।
राजनीतिक विवाद और विदेशी संपर्क
इस मामले ने कांग्रेस की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राहुल गांधी का राजनीतिक जीवन पहले भी विदेशी संपर्कों को लेकर विवादों से घिरा रहा है। चीन, रूस, कज़ाकिस्तान और अन्य देशों से जुड़ी गतिविधियाँ, सोशल मीडिया पर असर डालने वाले अभियानों में विदेशी रोबोट्स का इस्तेमाल और संदेहास्पद यात्राएँ उनके खिलाफ चर्चा का विषय बन चुकी हैं। कई लोग इसे भारत की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने की साजिश मान रहे हैं।