कानपुर। देश में महिला किसानों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। भारत की जनगणना 2011 के आंकड़े बताते हैं कि देश में तकरीबन छह करोड़ महिला किसान हैं। आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण के 2018-19 का डेटा बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 71.1 फ़ीसद महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करती हैं। वहीं, पुरुषों का प्रतिशत मात्र 53.2 प्रतिशत है। यह बातें महिला किसान दिवस पर वैज्ञानिक डॉ. निमिषा अवस्थी ने कही।
उन्होंने कहा कि जब भी हम किसान शब्द सुनते हैं तो हमारे सामने सहज ही पुरुष किसानों की तस्वीर सामने आती है। हमारे दिलो-दिमाग में सालों-साल से बैठाई गई रीति-नीतियों की वजह से आज भी हम यही मानते हैं। 15 अक्टूबर को जब महिला किसान दिवस मनाने की बात सोची गई तो उसके पीछे भी विचार तो यही रहा है कि एक किसान के रूप में महिलाओं के श्रम को हम तवज्जो दें, उन्हें सम्मान दें। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकॉनामिक रिसर्च के एक शोध के अनुसार वर्ष 2018 में देश के कृषि क्षेत्र के कुल कामगारों में महिलाओं की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत थी, लेकिन इसके उलट यदि मालिकाना स्थिति को देखें तो वह केवल दो फीसदी जमीन की ही मालिक हैं।
बताया कि परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के निष्कर्ष बताते हैं कि 26.7 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं का वजन कम है और 54.2 प्रतिशत एनीमिक हैं। स्पष्ट रूप से हमारी अधिकांश महिला कृषि उत्पादक और श्रमिक स्वयं कुपोषण की शिकार हैं। इसी क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र, दलीप नगर, कानपुर देहात ने ग्राम सहतावन पुरवा विकास खंड मैथा में महिला कृषकों का स्वास्थ्य परीक्षण कर कुपोषण एवं उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। स्वास्थ्य परीक्षण से पता चला की महिलाएं पूरे परिवार का तो ध्यान रखती हैं किन्तु अपने स्वास्थ्य के प्रति काफी उदासीन हैं।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मिथिलेश वर्मा ने बताया कि महिलाओं को अपने स्वास्थ का भी पूर्ण ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि महिलाएं घर और खेत ऋषि दोनों की जिम्मेदारी बराबरी से निभाती हैं। फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ अजय कुमार ने कहा महिलाओं को अपने घर में गृह वाटिका लगाकर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से तीन सौ ग्राम सब्जी का प्रयोग करना चाहिए। केंद्र के अध्यक्ष डॉ रामप्रकाश ने कहा महिलाओं के स्वास्थ्य में हाइजीन और सैनिटेशन का बहुत महत्व है।इसलिए महिलाओं को साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।