देहरादून जिले के चकराता फॉरेस्ट डिविजन के कालसी वन क्षेत्र में रिजर्व फॉरेस्ट में मुस्लिम समुदाय द्वारा जबरन कब्रिस्तान बनाए जाने का मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। केंद्र सरकर से राज्य सरकार और वन विभाग को इस मामले की जांच कर रिपोर्ट देनें को कहा है। जानकारी के मुताबिक आपको बता दें कि चकराता रिजर्व फॉरेस्ट डिविजन के कालसी रिवर रेंज की कक्ष संख्या 17 में 95 हेक्टेयर क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय द्वारा अवैध रुप कब्जा कर वहां पर कब्रिस्तान बनाया जा रहा है। जहां पहले कभी एसएसबी का प्रशिक्षण केंद्र हुआ करता था। वहीं अब इस मामले को लेकर स्थानिय हिंदू संगठनों द्वारा विरोध किया जाता रहा है।
कब्रिस्तान के लिए हो रहा है कब्जा
दरअसल इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री और केंद्रीय वन पर्यवरण जलवायु मंत्रालय को स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा एक जनवरी को पत्र भेजा गया था। जिसके बाद से वन सचिव, जिला प्रशासन और डीएफओ चकराता के बीच जांच आख्या का पत्राचार हो रहा है। वहीं डीएफओ चकराता द्वारा ये स्वीकार किया गया है कि जिस स्थान पर कब्रिस्तान बनाए जाने के षड्यंत्र किया जा रहा है और पहले भी यहां शव दफनाने की बात कही जा रही है और ये वन भूमि है और रिजर्व फॉरेस्ट के अंतर्गत आती है। डीएफओ कल्याणी ने वन सचिव को लिखे अपने पत्र में साफ लिखा है कि इस अवैध कब्रिस्तान को हटाने के लिए पुलिस पीएसी रैपिड एक्शन फोर्स और उच्च स्तरीय आदेश की जरूरत होगी। यानि वन विभाग ने स्वीकार किया है कि उनके क्षेत्र में कब्रिस्तान के लिए कब्जा हो रहा है।
वहीं डीएफओं नेलिखा कि इस जमीन को लेकर पूरी जांच होनी चाहिए क्योंकि ये मामला धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील हैं। ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि मुस्लिम समुदाय ने यहां मजार या कब्रिस्तान के लिए जो अवैध रूप से कब्जा किया उसे वन विभाग ने धार्मिक दृष्टि से देख आंखे मूंद ली। जिस वजह से उत्तराखंड के जंगलों में मजार जिहाद शुरु हुआ और तेरह सौ से ज्यादा यहां अवैध मजारे बना दी गई जिन्हें अब हटाया जा रहा है। जानकारी के मुताबिक इस रिजर्व फॉरेस्ट रेंज में कब्रिस्तान के अलावा मुस्लिम समुदाय द्वारा एक आश्रय स्थल और ऊपर पहाड़ की तरफ एक मजार भी बना दी गई है।
जानिए हिंदू संगठनों ने क्या कहा
स्थानिय हिंदू संगठनों का कहना है कि पिछले कई महीनों से इस मामले में वन विभाग और जिला प्रशासन से वार्ता भी हुई है लेकिन कोई समाधान नहीं निकाला जा हा है। हिंदू संगठनों का आरोप हैं कि जिस रिजर्व फॉरेस्ट में वन विभाग की अनुमति से कोई भीतर घुस नहीं सकता वहां लोग जाकर कब्र खोदने लगे और अधिकारी खामोशी की चादर ओढ़े रहे।
वहीं दूसरी तरफ उधर मुस्लिम पक्षकार सईद अहमद का कहना है कि हमने ये जगह 2016 से डीएम से कब्रिस्तान के लिए मांगी हुई थी उन्होंने इसके लिए वन सचिव को पत्र भी लिखा था। वहीं मुस्लिम पक्षकार के लोगों का दावा है कि 1976 में उस जगह कब्र बनी थी। जबकि स्थानीय लोग इसे सफेद झूठ करार दे रहें है। उनका कहना है चीन युद्ध के दौरान एसएसबी गुरिल्लाओ की जब भर्ती की गई थी तब उन्हे यहां हथियार चलाने ता और जंगल में युद्ध करने का प्रशिक्षण दिया जाता था। बाद में ये जंगल रिजर्व फॉरेस्ट का हिस्सा बन गया। लेकिन बड़ा सवाल ये हैकि वन सचिव हो या डीएफओ वे रिजर्व फॉरेस्ट की भूमि बिना केंद्र सरकार की अनुमति से किसी भी संस्था को ट्रांसफर नहीं कर सकते और ये ऐसी जगह है जो जंगलात है और जिसका क्षेत्र वाली कब्रिस्ताव बनाए जाने का विरोध कर रहे है क्योंकि रिजर्व फॉरेस्ट के आसपास आम बाग के क्षेत्र में हिंदू जनसंख्या रह रही है।
वन विभाग ने दिया गोलमाल जवाब
स्थानीय हिंदू नेताओं में सुरेंद्र दत्त जोशी और उनके साथियों द्वारा इस मुद्दे पर लगातार केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार से कारवाई करने की मांग की जाती रही है।इनके द्वारा पीएमओ तक पत्राचार किया गया है,उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत भी कई जानकारियां मांगी है।कई बार वन विभाग ने इस बारे में गोलमोल जवाब दिए जिसपर सूचना आयुक्त द्वारा गंभीर रुख अपनाया गया है।बरहाल इस मामले में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही भी सामने आ गई है। वन विभाग के कर्मचारियों की अनदेखी की वजह से जंगलों में मुस्लिम समुदाय ने मजार जिहाद को अंजाम दिया।जिस तेजी से उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी मैदानी जिलों से लेकर पहाड़ी जिलों ताक पांव पसार रही है उसे देख यही हालत होंगे कि पहाड़ो पर छोटे छोटे कस्बों के किनारे कब्रिस्तान ही कब्रिस्तान होंगे।