इस बार की शिवरात्री होने वाली है खास
शिव भक्तों के लिए कल का दिन बेहद सुगम होने वाला है। कल बेहद धूम धाम से शिवरात्री का महोत्सव देश में मनाया जाएगा शिव भक्तों के लिए कल का दिन बेहद उत्साह भरा रहने वाला है। आपको बता दें कि कल की शिवरात्री बेहद खास होने वाली है, हम ऐसा इसलिए कह रहें है। क्यूंकी 700 साल महाशिवरात्री के शुभ पर्व पर महा पंच योग बन रहा है। पंचांग के हिसाब से फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चौदस, ये दिन शुभ संयोग वाला है। इस दिन शिव पूजा का महत्तव और बढ़ जाएगा पूजा पाठ के साथ-साथ किसी भी नए काम और खरीदी बेहद शुभ रहने वाली है। बता दें इस दिन तेरस और चौदस दोनों तिथियां है, जो ग्रंथो में बेहद खास बताई गई है। यदी आप इन ग्रह योग में खरीदी या फिर नए काम की शुरूआत से फायदा प्राप्त होगा
क्यों मनाते है शिवरात्री
अक्सर लोगों को शिव पार्वती के विवाह को शिवरात्री के रूप से जानते है लेकिन बता दें कि शिव महापुराण के मुताबिक पाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चौदस को अर्ध रात्री में शिव जी अपने लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। तब पहली बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णू जी ने उस शिव स्वरूप शिवलिंग की पूजा की थी इसलिए इस दिन को शिवरात्री के रूप में मनाया जाता है।
पूजा करने का समय और विधी
शिवरात्री के इस शुभ अवसर पर आप सभी दिन रात पूजा को कर सकते है शिव महापुराण के अनुसार स्कंद,शिव और लिंग में बताया गया है कि इस त्योहार के नाम के मुताबिक रात्री में शिवलिंग का अभीषेक शुभ माना जाता है। किसी भी भगवान की पूजा विधी विधान पूर्वक हो तो सफल मानी जाती है। विधी के साथ की गई पूजा बेहद फलदाई साबित हो सकती है। बात करें शिव जी के पूजा और आराधना की यदी किसी कारणवर्ष मंदिर जाकर पूजा करने का समय ना मिले तो आप घर पर ही अपनी पूजा को ऊँ नम: शिवाय के जाप करते हुए शिव जी की पूजा कर सकते हैं। बात करें पूजन के विधी की तो बता दें कि आप अपने मंदिर में दीप प्रजवल्लित कर-कर सबसे पहले गणेश जी को प्रणाम कर शिव जी की पूजा का आरंभ कीजीए, ऊँ नम: शिवाय का मंत्र जाप करते समय शिवलिंग पर दूध,पंचामृत और जल अर्पित करें इसके बाद शिवजी को मौली और जनेऊ चढाएं इत्र चंदन और भस्म लगाएं साथ ही रूद्रक्ष से श्रिंगार करें हर तरह के फूल, मदार और बेल्पत्र और धतूरा मौसमी आदी फलो को अर्पित करें भगवान को दूध दीप फल अर्पित करने के बाद नैवद्द अर्पित करें और भगवान शिव जी की आरती करें
शिव जी की आरती
ऊँ जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा