लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण बिल को पास कर दिया गया है और अब सिर्फ राष्ट्रपति की मंजूरी ही बाकी रह गई है। सवर्ण आरक्षण बिल के तहत गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा और जो सवर्ण आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जिनकी सलाना कमाई 8 लाख रुपये से कम है वो आरक्षण के दायरे में आ सकते हैं। जिन गरीब सवर्णों के पास 5 एकड़ से कम जमीन है वो भी इसके दायरे में आएंगे।
लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग उठी है। इससे पहले नरसिम्हा राव सरकार ने भी गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए कदम उठाया था, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली थी जिसके बाद उस फैसले को निरस्त कर दिया गया था। अब एकबार फिर से मोदी सरकार गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के लिए कदम उठाया है लेकिन इसबार फिर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई है।
गैर सरकारी संगठन यूथ फोर इक्वेलिटी और कौशल कांत मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सवर्ण आरक्षण बिल को निरस्त करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि, एकमात्र आर्थिक आधार पर किसी को भी आरक्षण देना संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन होगा। याचिका में इस बात का भी जिक्र है कि सिर्फ सामान्य वर्ग को आरक्षण आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए और साथ ही 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण की सीमा को लांघना भी गलत होगा।