कुंभ पर्व विश्व मे किसी भी धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का सबसे बड़ा संग्रहण है। सैंकड़ों की संख्या में लोग इस पावन पर्व में उपस्थित होते हैं। कुंभ का संस्कृत अर्थ है कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है।
हिन्दू धर्म में कुंभ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता हैः हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज (इलाहाबाद) में संगम जहां गंगा,यमुना और सरस्वती मिलती हैं।
प्रयागराज का कुंभ पर्व:
ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयाग का कुंभ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है।
हरिद्वार का कुंभ पर्व:
हरिद्वार हिमालय पर्वत श्रृंखला के शिवालिक पर्वत के नीचे स्थित है। प्राचीन ग्रंथों में हरिद्वार को तपोवन, मायापुरी, गंगाद्वार और मोक्षद्वार आदि नामों से भी जाना जाता है। हरिद्वार की धार्मिक महत्तान विशाल है। यह हिन्दुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थान है। मेले की तिथि की गणना करने के लिए सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति की स्थिति की आवश्यकता होती है। हरिद्वार का सम्बन्ध मेष राशि से है।
नासिक का कुंभ पर्व:
भारत में 12 में से एक जोतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर नामक पवित्र शहर में स्थित है। यह स्थान नासिक से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और गोदावरी नदी का उद्गम भी यहीं से हुआ। 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार नासिक उन चार स्थानों में से एक है, जहां अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं। कुंभ मेले में सैंकड़ों श्रद्धालु गोदावरी के पावन जल में नहा कर अपनी आत्मा की शुद्धि एवं मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। यहां पर शिवरात्रि का त्यौहार भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है।
उज्जैन का कुंभ पर्व:
उज्जैन का अर्थ है विजय की नगरी और यह एमपी की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इंदौर से इसकी दूरी लगभग 55 किलोमीटर है। यह शिप्रा नदी के तट पर बसा है। उज्जैन भारत के पवित्र एवं धार्मिक स्थलों में से एक है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शून्य अंश (डिग्री) उज्जैन से शुरू होता है। महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार उज्जैन 7 पवित्र मोक्ष पुरी या सप्त पुरी में से एक है।