प्रयागराज में कुंभ मेला शुरु हो रहा है। मकर संक्रांति पर शाही स्नान के साथ पवित्र आयोजन का शुभारंभ हो गया। कुंभ मेले की शुरुआत शाही स्नान से हुई और यहां कई साधु डुबकी लगाते हुए नजर आए। शाही स्नान कुंभ मेले का बहुत अहम हिस्सा है और इस दौरान एक खास समय पर पवित्र नदी के जल में डुबकी लगाई जाती है।
शाही स्नान के समय करीब 13 अखाड़ों के साधु संत उस पवित्र नदी में स्नान करते हैं जिसके किनारे पवित्र कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस बार शाही स्नान प्रयागराज के संगम में होगा जिसकी तारीखें पहले ही घोषित की जा चुकी हैं। सभी 13 अखाड़ों के शाही स्नान का क्रम भी निर्धारित होता है और उनसे पहले कोई भी स्नान के लिए नदी में नहीं उतर सकता है। कई बार शाही स्नान को लेकर साधुओं में संघर्ष भी देखने को मिलता रहा है।
शाही स्नान की परंपरा सदियों पुरानी है लेकिन यह परंपरा वैदिक नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि शाही स्नान परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी। इस समय देश में मुगल शासक आने शुरु हो गए थे। धीरे-धीरे साधु इन शासकों को लेकर उग्र होने लगे और उनसे संघर्ष करने लगे।
ऐसे में शासकों ने साधुओं के साथ बैठक करके काम का बंटवारा और झंडे का बंटवारा किया। साधु को सम्मान देने और उन्हें खास महसूस कराने के लिए उन्हें पहले स्नान का अवसर देने का निश्चय किया गया। इस स्नान के दौरान साधुओं का सम्मान और ठाठ-बाट राजाओं जैसा होता है और इसी वजह से इसे शाही स्नान का नाम दिया जाता है।
बाद में शाही स्नान को लेकर अखाड़ों में संघर्ष होने लगा और कई बार तो विभिन्न अखाड़ों में संघर्ष के चलते एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए। यह घटनाएं ज्यादातर 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच घटीं। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में अखाड़ों का क्रम तय किया गया और आज भी उसी क्रम में शाही स्नान किया जाता है।
शाही स्नान के दौरान साधु-संत हाथी-घोड़ो, सोने-चांदी की पालकियों पर बैठकर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। एक खास मुहूर्त से पहले साधु तट पर इकट्ठा होते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं। माना जाता है मुहूर्त में नदी के अंदर डुबकी लगाने से अमरता प्राप्त हो जाती है। यह मुहूर्त करीब 4 बजे शुरु हो जाता है। साधुओं के बाद आम जनता को स्नान करने का अवसर दिया जाता है।
साधु खुद को खास महसूस कर सकें, इसके लिए कुंभ स्नान का सबसे पहले लाभ उन्हें देने की व्यवस्था हुई।