[vc_row][vc_column][vc_column_text]इस बार के कुंभ को और भव्य बनाने की पुरजोर कोशिशों के बीच अक्षय वट और सरस्वती को आम लोगों के दर्शनों के लिए खोल दिया गया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अक्षयवट का पूजन अर्चन कर इसे आम लोगों के लिए खोला तो वही सरस्वती खूब के भी मुख्यमंत्री ने दर्शन कर सरस्वती मां की प्रतिमा का अनावरण किया।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक अक्षयवट को प्रयाग का छत्र कहा जाता है और कहते हैं कि जब तक आप अक्षय वट के दर्शन नहीं करते हैं तब तक आप की प्रयाग की यात्रा अधूरी है और आपको पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है इसी मान्यता के साथ हजारों साल से अक्षय वट विराजमान है लेकिन पहले मुगलों ने फिर ब्रिटिश हुकूमत ने और आजादी के बाद सेना के कब्जे में होने की वजह से अक्षय वट को आम आदमी दर्शन करने से महरूम था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 दिसंबर को प्रयाग में आगमन के दौरान ऐलान किया था कि अक्षय वट और सरस्वती कूप के दर्शन आम श्रद्धालु भी कर सकेंगे उसी कड़ी में आम लोगों के लिए खोल दिया गया है।
ऐसे में क्या है अक्षय वट की पौराणिक मान्यता और कैसे हजारों साल से आज भी अक्षय वट वैसे ही हरा भरा खड़ा हुआ है पढ़िए News1 इंडिया की स्पेशल पेशकश।
लोक व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब गयी थी तो उस समय भी वट का एक वृक्ष बच गया था। जिसे आज अक्षयवट नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अक्षयवट का वृक्ष सृष्टि का परिचायक है। पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है।
इस वृक्ष का पुराणों में वर्णन करते हुए कहा गया है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है जिसके एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन व पुनः सृष्टि रचना करते हैं।
मोक्ष की कामना से अनेक लोग इस पर चढ़कर नदी में कूदकर अपने प्राणों का अंत कर देते थे इसलिये इसका एक नाम मनोरथ वृक्ष भी हुआ। वर्तमान में यह वटवृक्ष यमुना तट स्थित एक किले के परिसर में विराजमान है। अक्षयवट की पत्तियाँ व शाखायें दूर-दूर तक फैली है। अक्षयवट को ब्रहमा, विष्णु तथा शिव का रूप कहा गया है। कुम्भ में अक्षयवट दर्शन के बिना श्रद्धालु प्रयागराज में स्नान और पूजा पाठ अधूरा माना जाता है।
पौराणिक मान्यतानुसार तीर्थराज प्रयाग का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल अक्षयवट सृष्टि और प्रलय का साक्ष्य है। नाम से ही स्पष्ट है कि इसका कभी नाश नहीं होता।
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दं विनिवशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।
अर्थात- प्रलयकाल में जब सारी धरती जल में डूब जाती है तब भी अक्षयवट हरा-भरा रहता है। बाल मुकुंद का रूप धारण करके भगवान विष्णु इस बरगद के पत्ते पर शयन करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पवित्र वृक्ष सृष्टि का परिचायक है।
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