जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) एक बार फिर एनडीए से चुनाव लड़ रही है। इस बार हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा जेडीयू के कोटे से बिहार की सात विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ रही है।
नितीश कुमार ने महादलित, दलित और पिछड़ों के वोटों को साधने की कोशिश में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जेडीयू के साथ जोड़ा है। यही कारण है कि जेडीयू ने अपने कोटे से ही 7 टिकट दिए है।
जीतन राम मांझी महादलितों में मुसहर समुदाय से तालुक रखते है। बिहार के गया के आसपास के इलाक़ों में उनका प्रभाव बहुत माना जाता है। यही कारण है कि राजनीति में आने के बाद मांझी फ़तेहपुर, बाराचट्टी, बोधगया, मखदूमपुर और इमामगंज से भी चुनाव लड़े और जीत हासिल की। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नितीश कुमार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद मांझी बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। हालांकि नितीश कुमार की वापस वापसी से उनका मुख्यमंत्री का सफर ज्यादा लंबा नहीं चल सका।
संख्या के हिसाब से मुसहर जाति बिहार की 23 दलित जातियों में तीसरे स्थान पर है। इनसे ऊपर सिर्फ चमार और पासी है। बिहार में दलितों की कुल आबादी में मुसहर जाति 13.4 फीसदी है।
नितीश कुमार की वापसी के बाद मांझी और नितीश कुमार में दूरियां बढ़ती गई। मांझी ने नितीश कुमार के इशारे पर चलने से साफ मना कर दिया। दूरियां इतनी बढ़ी कि मांझी ने जेडीयू का दामन छोड़कर एक नई पार्टी बनाई। गत विधानसभा चुनावों में जीतनराम मांझी की पार्टी ने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उनकी पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पाई थी। पिछ्ले लोकसभा चुनावों में भी कोई सीट उनके हाथ नहीं लगी और गया से उनका सांसद बनने का सपना भी अधूरा रह गया। इस बार एनडीए का मांझी पर लगाया गया दांव सही साबित हो सकता है क्योंकि लोजपा अकेली चुनाव लड़ रही है।