बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों की चर्चा अब अपने मुकाम चढ़ने लगी है। चुनावी गलियारों में रोजाना नये-नये समीकरण सामने आते है लेकिन लोजपा का जेडीयू के सामने उम्मीदवार उतारना जेडीयू के गले की फांस बना गया है। यह तो तय है कि लोजपा इस बार जेडीयू के वोट कटवा पार्टी बनेगी।
लोजपा और चिराग पासवान ने तो पहले ही हुंकार भर ली है कि इस बार जेडीयू को बिहार से सता से बेदखल करेंगे। यही कारण है कि लोजपा एनडीए में तो है पर नितीश के खिलाफ। जहाँ-जहाँ नितीश कुमार की जेडीयू, वहाँ-वहाँ लोजपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे है जो नितीश के लिए चुनावी सिर दर्द बने हुए है। चिराग पासवान ने कहा है कि हम भाजपा के सामने कोई उम्मीदवार नहीं उतारेंगे और चुनावों बाद भाजपा और लोजपा मिलकर बिहार में सरकार बनाएगी।
हालांकि लोजपा ने बिहार में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने को वैचारिक मतभेद बताया है। जेडीयू के खिलाफ लोजपा की बयानबाजी तब ज्यादा तेज हो गई जब जीतन राम मांझी को नितीश कुमार अपनी तरफ लेकर आ गए। क्योंकि मांझी दलित नेता है और पासवान भी दलित नेता, ओर दोनों का इस समाज में जनाधार है। बिहार में दलित समाज की आबादी 4.5 फीसदी है।
दरअसल, अमित शाह ने यह रणनीति तैयार की है। जब चुनावी नतीजे आयेंगे तब BJP के हाथ में नीतीश कुमार से सौदेबाज़ी के लिए ज़्यादा ताकत मौजूद रहेगी। क्योंकि भाजपा महाराष्ट्र को दोहराना नहीं चाहती। अगर BJP का नतीजा बहुत अच्छा रहता है तो भाजपा नितीश कुमार को तवज्जो न देकर लोजपा के साथ सरकार बना ले और सूबे में अपना पहला मुख्यमंत्री बैठा दे। लेकिन ऐसी चाल नितीश भी कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता का स्वाद चख सकते है जो शिवसेना ने महाराष्ट्र में किया था। यह सब चुनावी नतीजों के बाद ही साफ होगा कि ऊँट किस करवट बैठेगा।