वैसे तो देश की जनता को बहस के लिए रोजाना ही नए मुद्दे मिल जाते है और मिलने भी चाहिए क्यूंकि मुद्दों पर बहस ही लोकतंत्र को मजबूत करते है। लेकिन क्या नए मुद्दों में जनता के हित की बहस कही खो जाती है। ताजा उदहारण हाथरस की घटना का है। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक दलित लड़की को 4 दबंग जबरदस्ती रेप कर घायल कर देते है लड़की के परिजन पीड़िता को अस्पातल में भर्ती कराते है जहा उसकी हालत खराब हो जाती है मामले को बिगड़ता देख पीड़िता को दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल में रेफर किया जाता है। फिर तभी एंट्री होती है प्रदेश के विपक्षी राजनैतिक दलों की और मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के द्वारा मजबूरन मुकदमा दर्ज किया किया जाता है और 8 दिन बाद मुक़दमे में बलात्कार जैसे संगीन आरोपों की धराये बढ़ायी जाती है। पीड़ित लड़की इलाज के दौरान ज़िन्दगी की जंग हार जाती है और उसका निधन हो जाता है।सारा मीडिया सिर्फ हाथरस की घटना को कवर करता है बावजूद इसके की देश में उसी दिन और उसके अगले दिन भी बलात्कार की कई ऐसी घटनाएं होती रही और हाथरस को राष्ट्रीय मुद्दा घोषित कर देता है।
कोरोना के बढ़ते मामले हो या कोरोना काल में लगा लॉकडाउन सभी एजंडे विपक्ष की सूचि में थे। इंतज़ार था तो बस संसद के मानसून सत्र का लेकिन वहा भी विपक्ष मुँह की खा गया क्योंकि सरकार ने संसद के प्रश्न काल को ही बंद कर दिया। अब बेचारा विपक्ष करे तो क्या करे। फिर तभी ऐतिहासिक घटना घटित होती है। अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ आंकड़े सरकार पेश करती है जिसमे बताया गया की देश की जीडीपी 23.9% तक गिर गयी है फिर क्या था सरकार को घेरने का एक और मौका मिल गया लेकिन कोरोना का हवाला देते हुए सरकार हर बार की तरह इस जीडीपी वाले गड्ढे से भी बहार निकल गयी और विपक्ष रह गया मुँह ताकता।
फिर बारी आयी जनता को और खेल दिखाने की जिसका नाम है “कृषि बिल”। सरकार ने पूर्व प्रस्तावित कृषि सम्बन्धी 3 कानून संसद में पास करा लिए। वैसे कानून पास तो पिछले पांच साल से आसानी से हो जाते है बिना विपक्ष के विरोध के चाहे वो जन हित में हो या नहीं। कृषि बिल में वैसा ही हुआ विपक्षी सांसद बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजने के लिए लेकिन सरकार ने एक न सुनी , कुछ सांसदों ने किसान हित का हवाला देते हुए राज्यसभा के उपसभापति का माइक तक तोड़ दिया लेकिन हुआ वही जो हर बार होता आया है मतलब बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गयी। किसानो का विरोध आरम्भ हुआ किसान संगठन सड़को पर उतर आये विपक्ष ने इस मुद्दे को भुनाने में कोई गलती नहीं की और सारे नेता किसानो के साथ सड़को पर आ गए और कृषि बिल को किसान विरोधी बताने लगे। लेकिन हर बार की तरह सरकार अपने फैसले पर अडिग रही और धीरे धीरे विरोध के स्वर शांत हो गए।
हम आपको ये सब बाते इसलिए याद दिला रहे है ताकि आपको पता चल सके की कोई मुद्दों आपके हित में हो या न हो विपक्ष हमेशा जनता के हित की बाते करते हुए मौजूदा सरकार के फैसलों का विरोध करता है भले ही दल कोई भी हो। मुद्दे बनते गए बहस जारी रही फिर नया कुछ आया और पुराना खत्म होता गया लेकिन इस घटनाक्रम में आम जनता के हाथ कुछ नहीं लग। न बेरोजगारी का कोई हल निकल सका और न ही जीडीपी गड्ढे से निकल पायी। कोरोना पर सरकार की नींद खुलने में समय लगा और देश धीरे धीरे इस भयंकर बीमारी की चपेट में आ गया अब तक एक लाख से ज्यादा लोगो की जान चुकी है और सरकार इन सब मुद्दों को भुलाकर कुछ नया करने के लिए आगे निकल चुकी है।