केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का कल शाम निधन हो गया। उनके निधन के बाद बिहार में लोजपा का प्रदर्शन कैसा रहेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन यह बात तो तय है कि बिना रामविलास पासवान के लोजपा का बिहार में कोई वजूद नहीं है।
लगातार कई वर्षो से केंद्रीय मंत्री के पद पर रहना ही उनका अपने आप में वजूद दर्शाता है। आज बिहार में लोजपा का वोट बैंकरामविलास पासवान की वजह से ही बना हुआ है। उन्होनें अपने राजनैतिक कैरियर में पिछड़े, वंचित शोषित और दलितों की आवाज को हमेशा ही बुलंद किया है। इसीलिए उनका जाना बिहार में एक खालीपन सा कर गया।
बात करे चिराग पासवान की तो उनको राजनीति विरासत में ही मिली है। उनका राजनैतिक अनुभव लंबा नहीं रहा है। अब उन पर निर्भर करता है कि वे अपने पिता की राजनैतिक विरासत को आगे कैसे ले जाते है।लोजपा हमेशा ही रामविला सपासवान की छत्रछाया में रही है और चिराग खुद उनकी छत्रछाया में राजनीति करते आए है। इससे यह तय है कि अब लोजपा के लिए बिहार में जमीन बचाना और रामविलास पासवान के वोटरों को अपनी तरफ लाना मुश्किल भरा काम होगा।
क्या सहानूभूति लहर से लोजपा वोट बटोरेगी
राजनीति में सहानूभूति हमेशा ही मायने रखती है। महाराष्ट्र में शिवसेना, आँध्रप्रदेश में YSR कांग्रेस और तमिलनाडू में AIDMK, यह पार्टियां आज भी अपने नेताओं के नाम पर सहानूभूति लहर से वोट बटोरती है। शिवसेना का वर्चस्व तो आज भी बाला साहब ठाकरे के कारण ही महाराष्ट्र में है। इतना तो तय है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में लोजपा रामविलास पासवान की सहानभूति के नाम पर वोट बटोरने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
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बिना लालू पिछ्ले लोकसभा में राजद शून्य
पूराने नेता और पार्टी के मुखिया का वोटरों पर क्या प्रभाव होता है इसका अंदाजा पिछ्ले लोकसभा चुनावों के नतीजों से ही लगाया जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में राजद बिना लालू के बिहार में खाता भी नहीं खोल सकी थी। उस समय लालू जेल में थे। लालू का जेल में होते हुए भी राजद का प्रदर्शन शून्य था, तो बिना रामविलास पासवान के लोजपा का प्रदर्शन कैसे अच्छा हो सकता है! हालांकि यह बिहार चुनावों के नतीजों के बाद ही तय होगा कि उनके बिना भी लोजपा चुनाव जीत सकती है।