भारत एक लोकतांत्रिक देश है। 130 करोड़ की आबादी वाले देश की मजबूती ही लोकतंत्र है। लोकतंत्र से जनता और देश मजबूत होता है। यही कारण है कि लोकतांत्रिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने बिहार में कोरोना जैसी महामारी में भी विधानसभा चुनाव कराने का निर्णय लिया है। लेकिन जिस राज्य में कोरोना महामारी के कारण उसका मुख्यमंत्री 3 महिनों से घर से बाहर नहीं निकला हो वहाँ 7 करोड़ लोगों की जिंदगियों से खिलवाड़ हो रहा है ओर एक महीने तक अभी जोखिम से भरा निकालना पड़ेगा।
चुनाव लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है। यही कारण है कि इस गम्भीर बिमारी में भी बिहार जैसे राज्य में चुनावों को करवाना अनिवार्य हो गया। भारत न झुकने और न रुकने वाला देश है। इसीलिए इस चुनाव से यह तय हो जायेगा कि भारत के लोकतंत्र को दुनिया की कोई भी ताकत न झुका सकती है और न ही रोक सकती है। हालांकि इस बार चुनावों में खर्चा अन्य चुनावों से अधिक आयेगा। इसका मुख्य कारण है कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करना।
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चुनाव आयोग और सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, चुनाव आयोग ने हर बूथ पर आने वाले सभी मतदाताओं को मतदान के पहले दस्ताने देने होंगे। अगर किसी भी मतदाता के पास मास्क नहीं है तो मास्क भी देने होंगे। इसके साथ-साथ पोलिंग अधिकारियों को पीपीई किट, मास्क, फेस शील्ड भी देने होंगे। इससे देश की गरीब जनता पर 125 करोड़ रुपये से ज्यादा का बोझ ओर पड़ेगा। लेकिन लोकतंत्र की मजबूती के लिए सब मंजूर है।
इस महामारी के दौर में कई विपक्षी दल अभी भी चुनावों के खिलाफ है। चुनाव आयोग को एक पूरे राज्य को चुनाव प्रक्रिया में झोंक देने के अपराध से तभी बचा जा सकता है जब पूरी प्रक्रिया को बिना कोरोना के प्रभाव से पूरा करने में सफल होती है। लेकिन फ़िलहाल बिहार में इस महामारी में भी चुनाव का होना लोकतंत्र की मजबूती के लिए बेहद आवश्यक है।