बिहार में इसी माह होने वाले विधानसभा चुनाव अब रफ्तार पकड़ चुके है। अधिकतर सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी हो चुकी है। महागठबंधन और एनडीए के नेता चुनावों में अपनी-अपनी पार्टी को जीताने में लगे हुए है। लेकिन अपने आप को भविष्य के नेता के रुप में सेट करने वाले कन्हैया कुमार और खुद को राजनीति की गणित का मास्टर मानने वाले प्रशांत किशोर अब तक बिहार चुनावों से नदारद ही दिख रहे है।
कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर (Prashant Kishore News) कोरोना वायरस के लॉकडाउन से पहले बिहार में सक्रिय थे, लेकिन उसके बाद एकाएक सा गायब हो गए। कन्हैया कुमार 2019 में CPI की टिकट पर बेगुसराय सीट से लोकसभा चुनाव लड़े पर अपनी टिकट को जीत में बदलने में नाकाम रहे थे। वहीं प्रशांत किशोर जेडीयू के उपाध्यक्ष भी रह चुके है। इससे पहले प्रशांत किशोर एनडीए और महागठबंधन के चुनावी रणनितिकार का काम भी संभाल चुके है।
कन्हैया कुमार इस साल की शुरुआत में बिहार के दौरे पर भी निकले थे और उनकोकई बार तो बिहार की जनता का विरोध भी झेलना पड़ा था। कहीँ पर उनके काफ़िले पर अण्डे फैँके गए तो कहीँ गाँव वालों ने रास्ता रोककर काफ़िले को वापस भेज दिया। उस समय कन्हैया कुमार ने CAA, NPR और NRC के विरोध में बिहार का दौरा किया था। लेकिन चुनाव आते-आते खुद ही गायब हो गए।
प्रशांत किशोर (Prashant Kishore News) को जेडीयू से निकालने के बाद उन्होनें एक मुहिम की शुरुआत की। जिसका नाम ‘बात बिहार की’। उस समय लोगों ने यहाँ तक कह ड़ाला कि प्रशांत किशोर अपने आप को बिहार के मुख्यमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट करेंगे। लेकिन उनकी इस मुहिम के लंबे चौड़े वादे खोखले ही निकले और कोरोना वायरस से इस मुहिम की हवा निकल गई।
जिस प्रकार कोरोना वायरस का सबसे अधिक प्रभाव प्रवासी मजदूरों पर पड़ा, ठीक उसी प्रकार यह दोनों भी राजनीति के प्रवासी मजदूर बनकर रह गए। लेकिन बात को समझा जाये तो दोनों एनडीए से चुनाव मैदान में आ नहीं सकते और महागठबंधन में तेजस्वी यादव के रहते इनकी जगह बनती नहीं। राजनीति में पढ़े लिखे होने के इतर राजनैतिक बैकग्राउंड होना भी जरूरी है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव लालू प्रसाद के बेटे होने के कारण पढ़े लिखे कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर को साइड लाईन कर दिया।
कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kuma) के ऊपर जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में देश विरोधी नारे लगाने के कारण देशद्रोह का तमगा भी लगा हुआ है। फ़िलहाल उन पर देशद्रोह का केस चल रहा है और कोई भी दल उनको साथ लेकर अपने वोटों को कटवाना नहीं चाहता। इतना ही नहीं अभी हाल ही में दिल्ली दंगो में लिप्त रहे उनके साथी उमर खालिद को भी गिरफ्तार किया गया है। वैसे भी कन्हैया कुमार को बिहार में विरोध प्रदर्शन ही झेलने पड़े थे तो कोई पार्टी उनका अपना वोट कटवा नेता नहीं बनाना चाहती। इससे यह साफ होता है कि कन्हैया कुमार अपने द्वारा किए गए कारनामों से गायब है और प्रशांत किशोर शायद 2020 नहीं 2025 के चुनावों के लिए योजना बना रहे होंगे!