चोरी-चौरा कांड का शताब्दी वर्ष की शुरू हो चुका है। इस मौके पर PM Modi ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की। जिसमें इस ऐतिहासिक घटना को याद कराते हुए उन्होंने इसके शताब्दी समारोह की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने एक टिकट भी जारी किया। समारोह में उनके साथ UP CM Yogi Adityanath और राज्यपाल Anandiben Patel भी शामिल रहें। यह समारोह चोरी-चौरा की घटना में शहीद हुए स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में रखा गया है, जो कि अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। यहीं नहीं गोरखपुर समेत सूबे के कई जिलों में कार्यक्रम किए जा रहे है, जिसमें शहीदों के परिजनों को सम्मानित भी किया जाएगा। यह शताब्दी समारोह 2022 के 4 फरवरी तक चलने वाला है।
#Gorakhpur– चौरी-चौरा के शहीदों को नमन, चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव का शुभारंभ, PM मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ें हुए हैं, इस मौके पर CM योगी का संबोधन Live@narendramodi @myogiadityanath @UPGovt @BJP4UP @ravikishann @AgrawalRMD @MrityunjayUP @navneetsehgal3 #ChauriChaura pic.twitter.com/QzS6ujdUl3
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क्या है चोरी-चौरा कांड का इतिहास?
यह घटना आज से 99 साल पहले 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चोरी-चौरा नामक जगह पर हुई थी। दरअसल, इससे पहले जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के बाद सितंबर 1920 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देशभर में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। उनके इस आंदोलन के समर्थन में चोरी-चौरा के स्थानीय लोगों ने 4 फरवरी 1922 को एक जुलुस निकालना शूरू किया। लेकिन इस दौरान अंग्रेज सिपाही ने एक प्रदर्शनकारी की गांधी टोपी को पांवों से रौंद दिया। जिसके बाद प्रदर्शनकारियों का गुस्सा फूटा और यह देख पुलिसवाले वहां से भाग थाने में छिप गए। लेकिन आंदोलनकारियों ने उनके थाने का घेराव कर लिया। पुलिस की ओर से बचाव में की गई फायरिंग में 3 आंदोलनकारी शहीद हो गए थें जबकि 50 से ज्यादा घायल हुए। जिसके बाद लोगों ने उनके थाने को आग के हवाले कर दिया जिसमें 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। इस पूरी घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
19 क्रांतिकारियों को मिली थी फांसी
इस पूरी घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। जिसको लेकर गोरखपुर कोर्ट में मुकदमा चला। मामले में पहले 11 फरवरी 1923 को 114 क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले संत बाबा राघव दास के अपील पर मदन मोहन मालवीय ने कोर्ट में क्रांतिकारियों का पक्ष रखा। जिसके बाद 114 में से 95 लोगों की सजा बाद में माफ कर दी गई। लेकिन दया याचिका दायर करने के बावजूद भी 2 जुलाई 1923 में 19 क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई।