इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोजाना औसतन 5 से 7 हजार मुकदमों की सुनवाई होती है. वकील पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं. वकीलों की हड़ताल के चलते हाई कोर्ट में पिछले 23 फरवरी से मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है. प्रयागराज: शिक्षा सेवा अधिकरण की प्रधान पीठ लखनऊ में बनाए जाने के विरोध में इलाहाबाद के वकील पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं.
सरकारी अमला है जिम्मेदार
वैसे वकीलों की इस हड़ताल के पीछे सीधे तौर पर सरकारी अमला जिम्मेदार है. सरकारी अमले ने पिछली बार के आंदोलन के बाद इस बात का एलान किया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के मुताबिक ही अधिकरण का गठन किया जाएगा और यहां के वकीलों के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी.
मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है
इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोजाना औसतन पांच से सात हजार मुकदमों की सुनवाई होती है. इसमें फ्रेश यानी नए मुकदमे भी शामिल रहते हैं और लिस्टिंग के यानी पुराने मुकदमों को भी नई तारीख पर आगे सुना जाता है. इन दिनों सुनवाई पूरी तरह ठप है. कोरोना काल में कामकाज प्रभावित होने की वजह से इलाहाबाद हाईकोर्ट की अकेले प्रधान पीठ यानी इलाहाबाद में ही पौने आठ लाख से ज़्यादा केस पेंडिंग हैं. लंबित मुकदमों में सिविल अपील के 119795, सिविल मिसलेनियस के 31750, सिविल रिट के 265570, क्रिमिनल अपील के 155295, क्रिमिनल मिसलेनियस के 198727 और क्रिमिनल रिट के 15828 केसेज पेंडिंग है. कोरोना काल के पिछले एक साल में मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.

पैसे और समय की बर्बादी हुई है
हाईकोर्ट की प्रधान पीठ में पांच मार्च तक कुल मिलाकर 786965 मुकदमे पेंडिंग हैं. हाईकोर्ट में नोएडा से लेकर गोरखपुर और मुरादाबाद से लेकर झांसी तक के मुकदमों की सुनवाई होती है. तमाम वादकारी तो वकालतनामा और दूसरी जरूरी प्रक्रियाओं के बाद वकीलों के जरिए ही केस की पैरवी कराते हैं, लेकिन कुछ वादकारी हर तारीख पर खुद भी मौजूद रहते हैं. ऐसे में वादकारियों को हो रही परेशानियों को समझा जा सकता है. कई वादकारियों का कहना है कि इससे न सिर्फ उनके पैसे और समय की बर्बादी हुई है, बल्कि उनके मुकदमों पर भी इस हड़ताल का असर पड़ा है.