देहरादून: उत्तराखंड में बसंत आगमन की खुशी में फूलों का त्योहार मनाया जाता है. बच्चे घर-घर जाकर फूलदेयी छम्माये देयी बोलकर लोगों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इसी के तहत श्रीनगर गढ़वाल में भी फूलदेयी की शुरुआत धूमधाम से की गई.
फूलों की देवी की होती है पूजा
फूलदेयी पर्व पर बच्चे सूबह घर-घर जाकर चौखट पर रंग बिरंगे फूलों को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली की कामना करते हैं. गीत गाए जाते हैं क्योंकि इसी दिन से हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास की शुरुआत मानी जाती है. फूलों का ये पर्व कहीं-कहीं पूरे महीने भर चलता है तो कहीं 8 दिनों तक बच्चे फ्योली, बुरांस और दूसरे रंग बिरंगे फूलों को लाते हैं. गोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है जिनकी इस समय पूजा भी की जाती है. फूलों की देवी को बच्चे पूजते हैं और आज भी ये पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है.

प्रेम और त्याग का प्रतीक है फूल
बसंत आगमन के साथ पहाड़ के कोने-कोने में फ्योली के पीले फूल खिलने लगते हैं. फ्योली का फूल पहाड़ में प्रेम और त्याग का सबसे सुंदर प्रतीक माना जाता है. फूलदेयी पर्व बच्चों को प्राकृतिक प्रेम और सामाजिक चिंतन की शिक्षा देता है. श्रीनगर गढ़वाल में आज फूलदेयी के त्योहार की शुरुआत आज धूमधाम से की गई. जिसमें श्रीनगर के रंगकर्मी, समाजसेवी और अन्य लोगों ने मिलकर इस त्योहार को धूमधाम मनाया.
ये पर्व उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान है
संस्कृति में विषेश पहचान रखने वाले लोगों के मुताबित फूलदेयी गढ़वाल कुमांउ संस्कृति की पहचान है. लोगों के मुताबिक ये पहचान है कि बच्चे किस तरह से हमारी सुख समद्धि के लिए कामना करते हैं. इसलिए, ये जरुरी है कि कम से कम बच्चों के जरिए फुलदेयी जैसे त्योहार को एक नई पहचान मिल सके. फुलदेयी त्योहार के जरिए बच्चे ही उत्तराखंड की संस्कृति को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं .फुलदेई के अवसर पर दहलीज में फूल चढ़ाते समय फुलारी सामूहिक स्वर में गीत भी गाते हैं.