सुप्रीम कोर्ट ने मोराटोरियम अवधि बढ़ाने से इंकार करते हुए कहा की पूरी तरह से ब्याज माफी संभव नहीं हैं. अदालत ने ट्रेडर एसोसिएशन और अपील करने वाले लोगों की लोन मोराटोरियम की अवधि में ब्याज माफ करने की अपील को ठुकराने के साथ मोराटोरियम अवधि बढ़ाने से भी मना कर दिया क्योंकि इस फैसले का असर डिपोजिटर्स पर भी पड़ेगा. 2 करोड़ तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज और साधारण ब्याज के बीच अंतर वसूला गया था. शीर्ष न्यायालय ने 31 अगस्त 2020 से आगे लोन मोराटोरियम का विस्तार नहीं करने के केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक नीतिगत फैसला है. कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर पिछले साल लोन मोराटोरियम की घोषणा की गई थी.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय केंद्र की राजकोषीय नीति संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता है, जब तक कि यह दुर्भावनापूर्ण और मनमाना न हो. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह पूरे देश को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान राहत देने के संबंध में प्राथमिकताओं को तय करने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. पीठ ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्रों के विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही. इन याचिकाओं में महामारी को देखते हुए लोन मोनाटोरियम की अवधि और अन्य राहत उपायों को बढ़ाने की मांग की गई थी.

ब्याज पर ब्याज मामला
उच्चतम न्यायालय ने बैंकों द्वारा कर्जदारों से ब्याज पर ब्याज की वसूली पर रोक का आग्रह करने वाली विभिन्न याचिकाओं पर आज फैसला सुनाया है. रिजर्व बैंक द्वारा कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऋण की किस्तों के भुगतान पर रोक की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी. बैंकों ने इस सुविधा का लाभ लेने वाले ग्राहकों से ऋण की मासिक किस्तों (EMI) के ब्याज पर ब्याज वसूला जिसे लोन मोराटोरियम का फायदा उठाने वाले लोगों ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी.