देश में होली के कई रंग देखने को मिलते हैं । अलग अलग प्रांतों में होली का त्योहार मनाने का अंदाज भी अलग अलग होता है । उत्तराखंड की बात करें तो यहां कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में होली की कुछ पुरानी परंपरायें आज भी जीवित हैं । कुमाऊं में विशेष तौर पर होली की चार विधाएं प्रचलित हैं । ये हैं खड़ी होली, बैठकी होली, महिलाओं की होली, ठेठर और स्वांग ।
खड़ी होली का त्योहार गांव के किसी एक घर में मनाया जाता है । ये गांव के मुखिया भी हो सकता है । इसमें स्थानीय शैली में नाच और गाने के जरिये होली मनाने की परंपरा है । इसमें वाधयंत्र, ढोल नागाड़े का भी इस्तेमाल किया जात है । खड़ी होली को ही सही मायनों में गांव की संस्कृति की प्रतीक से जोड़कर आप देख सकते हैं ।
चतुर्दशी के दिन क्षेत्र के मंदिरो में होली पहुंचती है और होली खेली जाती है । उसी दौरान मैदानी क्षेत्र में होलिका का दहन किया जाता है । कुमाऊं अंचल के गांव के सार्वजनिक स्थान में चीर दहन होता है । इसके दूसरे दिन होली का त्योहार रंगों और गुलाल से खेली जाती है ।
इस इलाके में महिलाओं की होली बसंत पंचमी के दिन से शुरु हो जाती है । ये होली के दूसरे दिन टीके तक प्रचलित रहती है । इसमें ढोलक और वाध यंत्रों के साथ महिलायें पारंपरिक गानों को अपने अपने अंदाज में गाती है । स्वांग और ठेठर होली को आप मनोरंजन की सहायक विधा मान सकते हैं और इसके बगैर होली अधूरी मानी जाती है । इसमें समाज के अलग-अलग किरदारों और उनके संदेश को अपनी जोकरनुमा पोशाक और प्रभावशाली व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है ।