हम सबने जिदंगी में चार मौसमों के बारे में सुना था, लेकिन आजकल पांचवां मौसम भी अपने शबाब पर है, जिसे हम चुनावी मौसम कहते हैं। इस मौसम में सब निठल्लों को काम मिल जाता है और अपने आप को साबित करने का मौका भी कि वे भी किसी के काम आ सकते हैं। और सच है, बंद घड़ी भी 24 घंटे में दो बार सही समय बताती है। इस मौसम में आप अपने आप को राजा समझते हैं और नेता आपको रिझाने की पुरजोर कोशिश करते हैं। आप अपने आप को घर जमाई से कम नहीं समझते, क्योंकि नेता आपकी हर इच्छा पूरी करते हैं। और नहीं कर पाते, तो उसे किसी और अवसर पर पूरी करने का वादा करके आपको देकर विदा करते हैं।
वे कुर्सी का ख्याल रखने को कहते हैं, आपका मन भी सावन के मौसम की तरह खिल रहा होता है। गली-मोहल्लों में उत्साह का वातावरण होता है। हर कोई केवल चुनावी मौसम की बातें करता मिलता है। इस मौसम का अंत भी और त्योहारों की तरह तब होता है, जब नेता जी जीत जाते हैं। लेकिन जब भी चुनाव निकट आते हैं, राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रलोभनों का पिटारा खोल देती हैं। पार्टियों ने मुफ़्त सुविधाएं देने के इतने सारे वायदे कर डाले हैं जैसे कि उनमें कोई प्रतियोगिता लगी हो। देश में हो रहे चुनावों के दौरान अपने घोषणापत्रों में दलों ने मतदाताओं को मुफ्त वाशिंग मशीन, सभी को मकान, सौर कुकर, शिक्षा ऋण माफी, सरकारी नौकरी, कोविड प्रभावित राशनकार्ड धारकों को 4000 रुपए मासिक, नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण, विभिन्न ऋणों की माफी देने के लम्बे-चौड़े वायदे किए हैं।
वैसे तो अब तक विभिन्न दल मतदाताओं को लुभाने के लिए विभिन्न रियायतों और सुविधाओं के अलावा शराब, नकद राशि, साडिय़ां, चावल, गेहूं, आटा, बल्ब, रंगीन टैलीविजन, लैपटॉप, मंगलसूत्र, मिक्सर ग्राइंडर आदि देने की घोषणा करते थे परंतु अब इनमें और भी अन्य वस्तुएं जुड़ गई हैं। इन्हीं अकल्पनीय और अव्यावहारिक वायदों के झांसे में आने से बचाने के उद्देश्य से लोगों को चेताने के लिए तमिलनाडु में मदुरै से निर्दलीय उम्मीदवार आर. सरवनन ने भी अपना अनोखा घोषणापत्र जारी किया है। उसने अपने चुनावी घोषणापत्र में चांद की मुफ्त सैर कराने, मुफ्त आईफोन, हैलीकाप्टर, हर परिवार के बैंक खाते में 1 करोड़ रुपए, युवाओं को रोजगार करने के लिए 1 करोड़ रुपए, हर परिवार को तीन मंजिला मकान देने व अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को गर्मी से बचाने के लिए 300 फुट ऊंचा बर्फ का पहाड़ बनाने जैसे वादे किए हैं।
लोकलुभाने वादों और प्रलोभनों यह सिलसिला आगे बढ़ता ही जा रहा है जिस कारण लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि वे तो मुफ्त के माल से ही जिंदगी बिता सकते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि मुफ्त के इस माल के वितरण का विकास, रोजगार या खेती से कोई संबंध नहीं है। मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए जादुई वायदों के जाल में फंसा कर लुभाया जाता है। यह तमाशा दशकों से जारी है जो हर पांच वर्ष बाद दोहराया जा रहा है। हर उम्मीदवार को चुनाव पर कम से कम 20 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं क्योंकि अधिकांश लोग अपना वोट बेचने के कारण भ्रष्ट हो चुके हैं। सिवाय बांटे गए मुफ्त के कुछ उपहारों के बाकी सब वादे वादे ही रह जाते हैं।
वैसे बता दूँ कि इन घोषणाओं के विरुद्ध एक जागरूक मतदाता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर करके अदालत से पार्टियों को लम्बे-चौड़े चुनावी वायदे करने से रोकने का आग्रह किया है। इस पर 31 मार्च को मद्रास हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी. पुगालेंढी पर आधारित खंडपीठ ने राजनीतिक पार्टियों को ‘लोक लुभावन वायदों का रिवाज’ बंद करने की सलाह देते हुए कहा कि लोगों को मुफ्त के उपहार देने पर खर्च किया जाने वाला धन यदि रोजगार के अवसर पैदा करने, बांधों के निर्माण और कृषि के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए इस्तेमाल किया जाए तो निश्चित रूप से समाज का उत्थान और राज्य की प्रगति होगी।’’ माननीय न्यायाधीशों ने यह भी कहा, ‘‘आज आर्थिक दृष्टिसे लाभप्रद न रहने के चलते अधिकांश किसानों ने कृषि का परित्याग कर दिया है जिससे यह व्यवसाय अनाथ होकर रह गया है।
बहरहाल, न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी. पुगालेंढी ने जो कुछ तमिलनाडु के बारे में कहा है वह समूचे देश पर लागू होता है। अत: चुनाव आयोग को मद्रास हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशों की इस सलाह का संज्ञान लेते हुए यह बात यकीनी बनानी चाहिए कि राजनीतिक दल अव्यावहारिक वादे न करें। इसके साथ ही केंद्र सरकार को भी सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श करके लोक-लुभावन वादों पर रोक लगाने संबंधी कानून बनाना चाहिए। इससे चुनावों में भ्रष्टाचार तथा काले धन का इस्तेमाल घटने से चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों के खर्चों में भी कमी आएगी और निष्पक्ष चुनाव हो सकेंगे।
लेखक
शिवम् दीक्षित
पत्रकार व सोशल मीडिया हेड
दैनिक हिंट, निवाण टाइम्स, न्यूज1इंडिया