वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है. मामले में कोर्ट ने पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी है. वहीं कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सर्वेक्षण का खर्च सरकार उठाएगी. सर्वेक्षण को लेकर 10 दिसंबर 2019 से बहस चल रही थी.
पूर्व में बहस के दौरान दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद सिविल जज आशुतोष तिवारी ने दो अप्रैल को निर्णय के लिए 8 अप्रैल की तारीख तय कर दी थी. अदालत के फैसले को लेकर परिसर में काफी गहमागहमी का दौर सुबह से ही बना रहा, लंच के बाद दोपहर 2:30 बजे फैसला आते ही प्रकरण को लेकर चर्चा का माहौल बना रहा.
वहीं इस मुकदमे के मामले में सुनवाई के क्षेत्राधिकार को लेकर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने सिविज जज सीनियर डिवीजन फास्टक ट्रैक के कोर्ट में सुनवाई करने के लिए अदातल में क्षेत्राधिकार को चुनौती दी थी.
25 फरवरी 2020 को सिविल जज सीनियर डिवीजन ने इस चुनौती को खारिज कर दिया था. इस फैसले के खिलाफ सुन्नी सेंट्रल वक्फि बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने जिला जज के यहां निगरानी याचिका दाखिल किया था. जिसपर आगामी 12 अप्रैल को सुनवायी होनी है.
कोर्ट में लंबे समय तक चला मामला
इस मामले में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दलील दी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की इसके निर्धारण के लिए साक्ष्य की आवश्यकता है. पुराने मंदिर के दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचा का रुप दिया गया बताया है। कहा गया है कि पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं. वहीं वर्तमान ज्योर्तिलिंग की स्थापना 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था. यह भी दलील दी गई कि अयोध्या केस में भी पुरातात्विक विभाग से रिपोर्ट मंगाई गई थी, जिसके बाद ही अंतिम फैसला आया था.