Navratri 2022: जालौन के ऊबड़-खाबड़ इलाके में बने मंदिर में जहां आस्था के आगे डाकू भी सिर झुका लेते थे. इन बीहड़ो में कभी डांकुओ के गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं लेकिन अब वहां मंदिर के घंटो की आवाज सुनाई देती हैं. इन जालौन के बीहड़ो में स्थित जालौन वाली माता के दर्शनो के लिए नवरात्र में भीड़ उमड़ पड़ी है. जिसकी वजह है कि बीहड़ अब डाकू मुक्त हो गया है. पिछले कई दशकों से जालौन और आसपास के जिलों इटावा, औरैया आदि में डाकुओं ने काफी हलचल मचा रखी थी.
जिससे लोगों में डकैतों का भय बना हुआ है. इससे लोग जालौन की मां के दर्शन करने कम ही आते थे. यह मंदिर यमुना और चंबल नदी के पास है जहां ज्यादातर डाकू अपना अड्डा बनाते थे. दो-तीन दशकों से डांकुओ के साम्राज्य के खत्म होने के कारण अब लोग बेखौफ घूमने आ रहे हैं. नवरात्रि में यहां भक्तों की संख्या में खासी बढ़ोतरी होती है. मंदिर से जुड़ी कहानियां और डांकुओ के किस्से से लोगों की आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गई है.
नवरात्रि में भक्तों की संख्या में खासी बढ़ोतरी
बीहड़ के जंगलो में राज करने वाले डकैत की खासियत रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ-साथ घंटों दर्शन भी करते रहे हैं. डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर आदि लोग ऐसे डकैत रहे, जो लोग समय-समय पर इन मंदिरों में मां के मंदिर में माथा टेकने के लिए गुप्त रूप से आते थे लेकिन डकैतों के खात्मे के बाद एक बार फिर लोग इस मंदिर की ओर बढ़ने लगे है.
दशकों से डांकुओ के साम्राज्य हुआ है खत्म
इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसे पांडवों ने द्वापर युग में स्थापित किया था. तब से यह एक प्रमुख स्थान रहा है, यह चंदेल राजाओं के समय में बहुत प्रसिद्ध हो गया, लेकिन आजादी के बाद डकैतों के कारण यह जगह चंबल का इलाका कहलाने लगी. डकैतों के डर से इस मंदिर में बहुत कम श्रद्धालु आते थे, लेकिन पुलिस और एस.टी.एफ. ज्यादातर डकैत अब मुठभेड़ के दौरान मारे गए हैं या कुछ ने मारे जाने के भय से समर्पण कर दिया है.
जंगलो में राज करने वाले डकैत की खासियत
जिससे अब जालौन जिले के बीहड़ में अब डकैतों से मुक्त हो गए हैं. आज नतीजा यह है कि जालौन की मां के दर्शन के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु बीहड़ स्थित मंदिर में पहुंच रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद पुलिस और पीएसी. सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. जिससे लोगों में डकैतों का खौफ खत्म हो गया है और मंदिर के आसपास मेले का माहौल नजर आ रहा है. स्थानीय निवासियों ने बताया कि मंदिर 1000 साल पुराना है. यहां पांडवों ने तपस्या की थी.
दर्शन के लिए पहुंचे है हजारों श्रद्धालु
मंदिर की स्थापना महर्षि वेद व्यास ने की थी. यहां डकैत आते थे लेकिन किसी को परेशान नहीं करते थे. हालांकि इस मंदिर से कई किंवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं. एक भक्त के मरे हुए बेटे के जिन्दा होने की बात की भी काफी चर्चा है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि मां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं, भक्त यहां आकर संपन्न हो जाते हैं, डकैतों के डर से लोग यहां पहले नहीं आते थे, लेकिन क्षेत्र के डकैत मुक्त होने के बाद मेले जैसा माहौल देखने को मिलता है.
ऐसा कोई डकैत नहीं जो यहां सिर झुकाने न आए
डकैतों ने किसी को परेशान नहीं किया, ऐसा कोई डकैत नहीं था जो यहां सिर झुकाने न आए. मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर कौरव पांडवों के समय का है, इस मंदिर की स्थापना वेद व्यास जी ने की थी. यह 20 साल पहले डकैतों का मंदिर हुआ करता था. यहां सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, डकैतों के कारण जनता को कभी कोई परेशानी नहीं हुई. डकैतों ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, डकैतों ने मंदिर में अपनी मां को प्रणाम करके लौट जाया करते थे.