चौबीस के चक्रव्यूह में लड़ाई यूं तो समाजवादी पार्टी औऱ बीजेपी की सीधी मानी जा रही है। लेकिन इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में मायावती भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहतीं। चुनाव दर चुनाव हार झेल रही मायावती के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव संजीवनी दे सकता है लिहाजा मायावती ने इसके लिए कड़ी मोर्चा बन्दी शुरु कर दी है। इसके लिए अब वो पार्टी के संस्थापक कांशीराम के फॉर्मूले पर दोबारा संगठन को खड़ा करने की तैयारी में है। सवाल उठता है कि क्या अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही मायावती इस फॉर्मूले के सहारे चौबीस का चक्रव्यूह भेद पाएंगी। बात करेंगे इस पर लेकिन देखिए पहले ये रिपोर्ट
मिशनरी अभियान के लिए निकली मायावती
चुनाव दर चुनाव हार के बाद अब मायावती को कांशीराम याद आए हैं। मिशनरी अभियान से निकली बीएसपी अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है लिहाजा मायावती ने एक बार फिर उसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ने का फैसला किया है जिससे पार्टी का पूरा ढांचा खड़ा हुआ था। इसके लिए मायावती ने कमान खुद अपने हाथों में संभाली है।
80 लोकसभा क्षेत्रों में दौरे करेंगी मायावती
नई रणनीति के तहत मायावती खुद सभी 80 लोकसभा क्षेत्रों में दौरे करेंगी। ‘वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा नहीं चलेगा’ के नारे को फिर से चुनावी कैम्पेन का हिस्सा बनाया जाएगा। ये नारा कांशीराम ने चार दशक पहले दिया था। कांशीराम के राजनीतिक तरीके को मायावती भी फॉलो करेंगी। इसके लिए अगस्त से कैडर कैम्प लगाए जा रहे हैं। जिसमें मायावती खुद ही कार्यकर्ताओं और समाज के लोगों से रूबरू होंगी।
गठबन्धन से मिली थी जीत
साल 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद बीएसपी का ग्राफ लगातार नीचे गिरा है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव को छोड़ दें तो यूपी में बीएसपी की सियासी जमीन काफी हद तक दरक चुकी है। वैसे भी 2019 में बीएसपी के 10 सांसद अगर जीत गए तो इसकी वजह सपा-बसपा गठबन्धन रहा। कभी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बीएसपी के हिस्से 2022 में सिर्फ एक विधानसभा सीट आई। वोटों का प्रतिशत भी खिसककर 13 प्रतिशत से नीचे आ गया। हालिया के निकाय चुनावों में मेयर की सीटों पर भी बीएसपी का वोट प्रतिशत 12 से नीचे रहा।
लगाए जाएंगे कैडर कैम्प
यानी मायावती के लिए अब यूपी में सियासी तौर पर कुछ खोने को बचा नहीं है। मायावती की सबसे बड़ी चिन्ता अपने बेस वोटर्स को सहेजने की है। क्योंकि ये वोटबैंक तेजी से खिसक कर बीजेपी की तरफ जा रहा है। लिहाजा बेस वोटर्स के लिए नई रणनीति तैयार की गई है जिसके तहत पहले की तरह नियमित कैडर कैम्प लगाए जाएंगे। इनमें पार्टी की विचारधारा और कायदे कानूनों की ट्रेनिंग दी जाएगी। बूथ स्तर तक कमेटियां गठित की जाएंगी। लोकसभा और विधानसभा स्तर पर बैठकें होंगी जिन पर खुद मायावती नजर रखेंगी।
बीएसपी का सियासी जनाधार कमजोर
ये सारा फॉर्मूला वो है जिसकी शुरुआत कांशीराम ने बीएसपी के गठन के वक्त की थी….वक्त के साथ जैसे जैसे कार्यकर्ताओं और शीर्ष नेताओं की दूरी बढ़ी तो उसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा….ऐसे दौर में जबकि बीएसपी का सियासी जनाधार कमजोर हुआ है…औऱ पार्टी में मायावती के अलावा कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है। मायावती की कोशिश कांशीराम की रणनीति पर चलकर पार्टी को मजबूत बनाने की है। अब ये कोशिश चुनावी लिहाज से कितनी कारगर साबित होगी ये देखना दिलचस्प रहेगा।







