सपा सांसद ने प्रोटेम स्पीकर और स्पीकर को पत्र लिखकर कहा कि मैं आज सम्मानित सदन में आपके समक्ष सदस्य के रूप में शपथ ली। मैं भारत के संविधान, जो विधि द्वारा बनाया गया है, के प्रति पूरी तरह से निष्ठा रखूंगा।
लेकिन सदन में पीठ के ठीक पीछे सेंगोल देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। महोदय, सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है, जबकि हमारा संविधान भारतीय लोकतंत्र का पवित्र ग्रंथ है। राजा-रजवाड़े का महल नहीं, हमारी संसद लोकतंत्र का भंडार है। ऐसे में मैं आपसे अनुरोध करना चाहूंगा कि संसद भवन से सेंगोल को बाहर निकालकर उसकी जगह भारतीय संविधान का बड़ा प्रतिष्ठान लगाया जाए।
गुरुवार को आम आदमी पार्टी (AAP) से राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि संविधान की कॉपी को बचाने से अधिक महत्वपूर्ण है। उनका कहना था कि हमारी पार्टी समाजवादी पार्टी के सांसद की मांग का समर्थन करती है।
क्या कहा अखिलेश ने
जब पूछा गया कि उनकी राय क्या है, अखिलेश ने कहा कि जब सेंगोल लगा था, तब मेरी राय आर्काइव से निकालकर चलाइए। सेंगोल रहना चाहिए क्या? जवाब में अखिलेश ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री प्रणाम करना भूल गए तो इसका अर्थ है कि उनकी भी कुछ अन्य इच्छाएँ होंगी।
उठाने की मांग का क्या उद्देश्य है?
सेंगोल की स्थापना से अब तक कोई बहस नहीं हुई है। लेकिन अब भारत एक लोकतांत्रिक देश है, सपा सांसद ने कहा कि सेंगोल राजतंत्र का प्रतीक है। यही कारण है कि एक लोकतांत्रिक देश संविधान पर निर्भर है। इसलिए, सेंगोल की जगह यहां भारतीय संविधान की बड़ी प्रति लगाई जानी चाहिए। हमारी संसद राजा या राजघराने का महल नहीं है; यह लोकतंत्र का मंदिर है।
सेंगोल क्या है?
28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंगोल को नवनिर्मित संसद भवन में स्थापित किया। 14 अगस्त 1947 की रात को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस सेंगोल को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के तौर पर स्वीकार किया। क्या चोल साम्राज्य ने 8वीं शताब्दी में इसे शुरू किया था? संप्रभुता का प्रतीक सेंगोल है। ये सोने और चांदी के राजदंड अधिकार और शक्ति का प्रतीक हैं। ऐसे में सांसद आर के चौधरी ने इसे राजतंत्र का प्रतीक बताते हुए संसद भवन से इसे हटाने की मांग की है। सेंगोल संप्रभुता का प्रतीक नहीं है, लेकिन राजतंत्र है।
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