Phulpur by-election: फूलपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस की वापसी से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुरेश यादव के पर्चा भरने से समीकरण बदल गए हैं। Phulpur की इस सीट का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि यहीं से देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू चुनाव जीते थे। लंबे समय से इस सीट पर कांग्रेस कमजोर रही है, लेकिन इस बार उसकी दावेदारी ने गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सपा, भाजपा और बसपा के उम्मीदवारों के बीच यह मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है, जिसमें जातीय समीकरण और पुराने वोट बैंक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
कांग्रेस की वापसी से बढ़ी हलचल
Phulpur का इतिहास कांग्रेस से जुड़ा रहा है। यह वही सीट है, जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, समय के साथ कांग्रेस ने इस सीट पर पकड़ खो दी और 2024 तक यह सपा और भाजपा के बीच मुकाबले की सीट बन चुकी थी। अब, सुरेश यादव के मैदान में आने से कांग्रेस की वापसी के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि, सपा से मुज्तबा सिद्दीकी और भाजपा से दीपक पटेल भी मैदान में हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
बसपा भी लड़ाई में मौजूद
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी इस चुनाव में तीसरे मोर्चे के रूप में खड़ी है। पिछले चुनावों में बसपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर गिरा था। बावजूद इसके, बसपा का काडर वोट अब भी उसके साथ है, और इस चुनाव में उसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। फूलपुर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण भी बेहद दिलचस्प हैं। यहां यादव, मुस्लिम और अनुसूचित जाति के मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं।
धर्मेंद्र यादव ने तोड़ा बहनोई से रिश्ता, कहा ‘ऐसा रिश्ता मेरे लिए शर्मनाक’
जातीय समीकरण और चुनावी रणनीति
Phulpur में चार लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें अनुसूचित जाति के करीब 75 हजार, यादव 70 हजार, पटेल 60 हजार, ब्राह्मण 45 हजार और मुस्लिम 50 हजार हैं। जातीय समीकरणों के लिहाज से यह सीट हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। भाजपा ने अब तक अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है, जो सपा की रणनीति को प्रभावित कर सकता है। अगर भाजपा अपने उम्मीदवार को बदलती है, तो सपा और बसपा के बीच ध्रुवीकरण के आसार हैं।
फूलपुर उपचुनाव के नतीजे न केवल इस सीट की भविष्यवाणी करेंगे, बल्कि उत्तर प्रदेश की सियासत के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे।