प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। धार्मिक नगरी प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन अगले वर्ष होने जा रहे हैं। ऐसे में शहर को दुल्हन की तरह से सजाया और सवांरा जा रहा है। इन्हीं में से एक यमुना नदी के बीच में सुजावन देव मंदिर है। यहां भगवान शिव व माता यमुना मंदिर में विराजमान है। इस मंदिर में वर्ष भर लोगों का आना जाना रहता है। मंदिर के आस-पास की भीटा पहाड़ी में कभी नगरीय सभ्यता थी। इस मंदिर की आस्था हजारों लोगों से जुड़ी है। प्रकृति की गोद में मंदिर स्थित होने से भव्यता और बढ़ जाती है। ऐसे में अगर आप महाकुम्भ में डुबकी लगाने को लेकर आ रहे हैं तो सुजावन देव मंदिर जाकर भगवान महादेव के दर्शन जरूर करें।
प्रयागराज का सुजावन देव मंदिर
शहर से करीब 25 किमी दूर पश्चिम में यमुना नदी की बीच धरा में सुजावन देव मंदिर है। मंदिर में भगवान शिव और मां यमुना विराजमान हैं। कार्तिक माह में यम द्वितीया पर विशाल मेला लगता है। इस मेले में आस पास के अलावा मध्य प्रदेश के जिलों से भक्त शिवजी और मां यमुना की आराधना करने आते हैं। यहां सावन के एक महीने और महाशिवरात्रि पर भी भक्तों की भीड़ जुटती है। अगले साल संगम नगरी में महाकुम्भ का आयोजन हैं। लाखों की संख्या में भक्त महाकुम्भ में शामिल होंगे और संगम में डुबगी लगाकर पुण्ण कमाएंगे। ऐसे में आप एकबार जरूर सुजावन देव मंदिर जाएं और महादेव-मां यमुना के दर्शन करें। बताते हैं कि हर भक्त की मन्नत महादेव पूरी करते हैं।
मंदिर के उत्पत्ति की कहानी दिलचस्प
भीटा पहाड़ी में स्थित सुजावन देव मंदिर की उत्पत्ति की कहानी दिलचस्प है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत में गदर के बाद यमुना नदी की एक शाखा जब ईस्ट इंडियन रेलवे के उस पार निकली तो उससे जुड़े ठेकेदारों ने ईंटों की खोज में इस स्थान को खोज निकाला। ईंटों को निकालने में यहां प्राचीन नगर की सभ्यता के अवशेष मिले। इस नगर के चिह्न उत्तर की ओर सुजानदेव के मंदिर से शुरू होकर दक्षिण में कुछ किमी तक फैले थे। पुजारी बताते हैं कि सुजावन देव का मंदिर यमुना के बीच में स्थित होने से यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि शायद पहले यह मंदिर नगर से ही मिला रहा होगा। और समय के साथ ही नदी के प्रवाह के बीच की भूमि कट कर बहने से अब यह टापू के रूप में आ गया होगा।
मुगल शासक ने तोड़ा था मंदिर
मंदिर से जुड़ा इतिहास भी रहा है। बताते हैं कि शाहजहां के समय में शाइस्ता खां इलाहाबाद यानी प्रयागराज का सूबेदार था। उसने 1645 में पुराने मंदिर को तोड़कर अठपहल बैठक बनवा लिया, जिसका 21 फुट व्यास था। कालांतर में इस स्थान पर हिंदुओं ने फिर अधिकार कर लिया। एक मूर्ति उसमें स्थापित कर दी। भीटा स्थित सुजावन देव मंदिर पर्यटन विभाग के नक्शे पर अंकित है। यह मंदिर यमुना के बीच में रहा। मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग से से संरक्षित है। बारिश के दिनों में भक्त नाव से मंदिर में पहुंचते हैं। सावन के महिने में हरदिन हजारों की संख्या में भक्त आते हैं और भगवान शिव व मां यमुना की पूजा-अर्चना करते हैं। महाकुम्भ के आयोजन के चलते मंदिर के आसपास बड़े पैमाने पर विकास कार्य चल रहा है।
बहन यमुना से मिलने आए थे यमराज
सुजावन देव मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि यहां यम द्वितीया के दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। अपने आतिथ्य सत्कार से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मंगाने के लिए कहा। यमुना ने वर मांगा कि भैया दूज के दिन जो भक्त यमुना स्नान करेंगे उन्हें मृत्यु का भय न रहे और देव लोक में स्थान मिले। यमराज ने तथास्तु कहा। बोले कि ऐसा ही होगा। इसी मान्यता के अनुसार सुजावन देव मंदिर और यमुना तट पर दीपावली के बाद यम द्वितीया को विशाल मेला लगता है। यहां आकर भक्त यमुना नदी में दीपदान करते हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि भारत में मां यमुना का इकलौता मंदिर प्रयागराज में हैं। मां यमुना और महादेव के दर्शन के लिए भक्त देश ही नहीं बल्कि विदेश से आते हैं।