Harsha Richariya in Mahakumbh : महाकुंभ में पेशवाई के रथ पर बैठने के बाद चर्चा में आईं ,हर्षा रिछारिया ने हाल ही में बड़ा कदम उठाया। उन्होंने कैलाशानंद महाराज का पंडाल छोड़कर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी के संरक्षण में जाने का फैसला किया है। रविंद्र पुरी ने उन्हें बेटी की तरह अपनाया और चुनरी ओढ़ाकर उनका स्वागत किया। हर्षा का कहना है कि अब वह पूरी शाही रथ सवारी में शामिल होंगी और महाकुंभ में युवाओं को धर्म से जोड़ने का प्रयास करेंगी।
4 जनवरी को महाकुंभ की पेशवाई में 30 साल की हर्षा रिछारिया रथ पर संतों के साथ बैठी नजर आई थीं। इस दौरान उन्हें साध्वी बनने पर सवाल किया गया। उन्होंने बताया कि वह सुकून और धर्म की तलाश में यहां आई हैं। हर्षा का रथ पर बैठना कुछ लोगों को पसंद नहीं आया और इसे धर्म के प्रदर्शन का हिस्सा कहा गया। संत आनंद स्वरूप ने इसे गलत ठहराते हुए कहा कि यह समाज में गलत संदेश देता है।
हर्षा ने जवाब दिया कि वह साध्वी नहीं हैं, बस दीक्षा ले रही हैं। हालांकि, इस विवाद के चलते उन्हें ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा और 17 जनवरी को उन्होंने कुंभ छोड़ने का फैसला कर लिया।
युवाओं के लिए धर्म का संदेश
हर्षा ने कहा कि जब उन्होंने कुंभ छोड़ने का फैसला किया, तब देशभर के युवाओं से उन्हें संदेश और कॉल आए। उन्होंने कहा,
युवाओं ने मुझसे कहा कि अगर आप चली गईं, तो हम भी धर्म से नहीं जुड़ेंगे। यह सुनकर उन्होंने दोबारा वापसी का मन बनाया। उनका कहना है कि वह युवाओं को धर्म की ओर आकर्षित करना चाहती हैं और उन्हें सही राह दिखाना चाहती हैं।
नया सफर, नया समर्थन
अब हर्षा ने रविंद्र पुरी को अपना पिता माना है और कहा कि उनके संरक्षण में वह खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। अगर पिता का साथ मिल जाए, तो बेटी को किसी और चीज की जरूरत नहीं होती, हर्षा ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि महाराज जी का आशीर्वाद उनके सिर पर है और अब कोई उन्हें रोक या तोड़ नहीं सकता।
रविंद्र पुरी का बयान
रविंद्र पुरी ने कहा कि हर्षा को लेकर गलत बातें फैलाई गईं, जिससे उन्हें ठेस पहुंची। उन्होंने कहा, हर्षा हमारी बेटी है। हमारे रथ में दुनिया भर के लोग बैठते हैं। उसमें हर्षा के बैठने में क्या बुराई है? यह षड्यंत्र और अफवाहें बंद होनी चाहिए।
महाकुंभ में नई उम्मीद
हर्षा ने साफ कहा कि वह महाकुंभ में पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ रहेंगी। उनका उद्देश्य युवाओं को धर्म की ओर प्रेरित करना और समाज में जागरूकता फैलाना है। उन्होंने अपने आंसुओं को खुशी और दुख दोनों का प्रतीक बताया। हर्षा रिछारिया का सफर महाकुंभ में विवादों और चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने इसे सकारात्मक रूप से लिया। अब वह धर्म के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और युवाओं के लिए प्रेरणा बनने का प्रयास कर रही हैं। उनका यह साहस और समर्पण महाकुंभ के लिए एक नया संदेश है।