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हां ऐसी थी मौनी अमावस्या की वो त्रासदी, कुंभ भगदड़ में 1000 से अधिक श्रद्धालुओं को गंवानी पड़ी जान

Prayagraj Mahakumbh Stampede News: 1954 प्रयागराज कुंभ में भगदड़ के चलते 1000 लोगों की हुई थी मौत, तब सरकार ने कहा था कि सिर्फ भिखारियों की ही गई है जान।

by Vinod
January 30, 2025
in Latest News, TOP NEWS, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज, महाकुंभ 2025
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प्रयागराज ऑनलाइन डेस्क। Prayagraj Mahakumbh Stampede News संगमनगरी में चल रहे महाकुंभ पर्व में मौनी अमावस्या के दिन करीब आठ करोड़ श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में डुबकी लगाई। मौत के तांडव के बाद भी संत और भक्तों का उल्लास देखते ही बन रहा था। भगदड़ के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने ऑफिस को वार रूप में तब्दील कर दिया और महज कुछ घंटे के अंदर हालात पटरी पर लौट आए। हालांकि भगदड़ के चलते 30 श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। ये सीएम योगी ही थे, जिनके चलते महाकुंभ में बड़ी जानिहानी नहीं हुई। जबकि इससे पहले कुए कुंभ में भगदड़ के चलते सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गए थे। आजाद भारत का पहला महाकुंभ 1954 को प्रयागराज में हुआ। तब हादसे में 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भगदड़ में एक भी व्यक्ति की जान नहीं गई।

पहले जानें महाकुंभ 2025 की भगदड़

दरअसल, दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला तीर्थराज प्रयागराज में चल रहा है। 13 से लेकर 29 जनवरी के बीच करीब 20 करोड़ भक्त संगम में डुबकी लगाकर एक नया कीर्तिमान बनाया है। प्रदेश सरकार ने श्रद्धालुओं के लिए आधुनिक व्यवस्थाएं की हुई हैं। पर मौनी अमावस्या पर्व पर अचानक भगदड़ मच गई। जिससे 30 श्रद्धालुओं की दर्दनाक मौत हो गई। वहीं 60 से अधिक भक्त गंभीर रूप से घायल हो गए। ये हादसा नोज में स्नान के चलते हुआ। करीब 25 लाख लोग अमृत स्नान के लिए नोज स्थल पर पहुंचना चाहते थे। कुछ लोग जमीन पर सो रहे थे। भीड़ ने बेरीकेडिंग को तोड़ते हुए आगे बढ़ी और सो रहे लोगों को कुचलते हुए आगे निकल गई। जिसके कारण सो रहे भक्त गंगा लोगों की चपेट में आ गए और उनमें से कईयों की मौत हो गई। इनसब के बीच महाकुंभ हादसे को लेकर देर शाम सीएमयोगी आदित्यनाथ पत्रकारों से वार्ता करते हुए भावुक हो गए। घटना का जिक्र करते हुए उनका गला रुंध गया और आंखें नम हो गईं। उन्होंने बताया कि इस हादसे में 30 श्रद्धालुओं की मौत हुई है।

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3 फरवरी 1954 को हुआ था हादसा

साल 1954, आजाद भारत का पहला कुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या थी। लाखों लोग स्नान के लिए संगम पहुंचे थे। बारिश की वजह से चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी। सुबह करीब 8-9 बजे का वक्त रहा होगा। मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। अपनी तरफ भीड़ आती देख नागा संन्यासी तलवार और त्रिशूल लेकर लोगों को मारने दौड़ पड़े। भगदड़ मच गई। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर लटक गए। भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। यूपी सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया। संसद में नेहरू को बयान देना पड़ा। 65 साल बाद 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी ने उस हादसे के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।

बिना योजना के भीड़ को छोड़ा गया

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हादसे के वक्त सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी 1954 के कुंभ में मौजूद थे। 1989 में मुखर्जी की आंखों-देखी रिपोर्ट ‘छायाकृति’ नाम की हिंदी मैगजीन में छपी। मुखर्जी लिखते हैं, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एक ही दिन स्नान के लिए संगम पहुंच गए। ज्यादातर पुलिस और अफसर उनकी व्यवस्था में व्यस्त हो गए। मैं संगम चौकी के पास एक टावर पर खड़ा हुआ था। करीब 10.20 बजे की बात है। स्नान करने वाले घाट पर बैरिकेड लगाकर हजारों लोगों को रोका गया था। आम लोगों के साथ-साथ हजारों नागा साधु, घोड़ा गाड़ी, हाथी, ऊंट सब घंटों इंतजार करते रहे। दोनों तरफ जनसैलाब जम गया था। इसी बीच नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी की तरफ से आई और किला घाट की तरफ निकल गई। जब नेहरू और बाकी वीवीआई लोगों की गाड़ी गुजर गई, तो बिना किसी योजना के भीड़ को छोड़ दिया गया।

मुझे बचाओ, मुझे बचाओ की चीख गूंज

सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी आगे लिखते हैं, भीड़ बैरिकेड तोड़कर घाट की तरफ जाने लगी। उसी रोड पर दूसरी छोर से साधुओं का जुलूस निकल रहा था। भीड़ और साधु-संत आमने सामने आ गए। जुलूस बिखर गया। बैरिकेड की ढलान से लोग ऐसे गिरने लगे, जैसे तूफान में खड़ी फसलें गिरती हैं। जो गिरा वो गिरा ही रह गया, कोई उठ नहीं सका। चारों तरफ से मुझे बचाओ, मुझे बचाओ की चीख गूंज रही थी। कई लोग तो गहरे कुएं में गिर गए। मुखर्जी लिखते हैं, कोई बिजली के तारों पर झूलकर खुद को बचा रहा था। उसकी तस्वीर खींचने के चक्कर में मैं भगदड़ में गिरे हुए लोगों के ऊपर गिर गया। दोपहर करीब 1 बजे मैं दफ्तर पहुंचा, तो अखबार के मालिक ने मुझे गोद में उठा लिया। वे जोश में चीख पड़े, ‘नीपू हैज कम बैक अलाइव.. नीपू जिंदा लौट आया है। तब मैंने उनसे कहा कि हादसे के फोटोग्राफ्स भी लेकर आया हूं।

कहा था कि हादसे में कुछ भिखारी ही मरे है

सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एनएन मुखर्जी लिखते हैं तब सरकार ने कहा था कि हादसे में कुछ भिखारी ही मरे हैं। सैकड़ों लोगों के मरने की खबर गलत है। मैंने अधिकारियों को हादसे की तस्वीरें दिखाईं, जिसमें महंगे गहने पहनी महिलाएं भी थीं। जो इस बात का तस्दीक कर रही थीं कि अच्छे बैकग्राउंड वाले भी लोग कुचलकर मरे हैं। एक और जर्नलिस्ट ने 1954 की त्रासदी के बारे में बताया था कि अस्सी के दशक में दादा मुखर्जी ने मुझे 1954 कुंभ में मची भगदड़ का किस्सा सुनाया था। भगदड़ में सैकड़ों लोग मारे गए थे। आजादी के बाद पहला कुंभ था, इसलिए सरकार के लिए यह साख का भी सवाल था। 4 फरवरी 1954 को अमृत बाजार पत्रिका नाम के अखबार में हादसे की खबर छपी। एक तरफ भगदड़ में लोगों के मारे जाने की खबर और दूसरी तरफ राजभवन में राष्ट्रपति के स्वागत में रखी गई पार्टी की तस्वीर अखबार में छपी।

जलती लाशों की खींची तस्वीर

तब की यूपी सरकार ने कहा कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में गलत खबर छपी है। इसका खंडन छापना चाहिए। अगले दिन मुखर्जी फिर कुंभ मेला पहुंचे। तब उन्होंने देखा कि प्रशासन शवों का ढेर बनाकर उसमें आग लगा रहा था। किसी भी फोटोग्राफर या पत्रकार को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस मुस्तैद थी।बारिश हो रही थी। एनएन मुखर्जी एक गांव वाले की वेशभूषा में छाता लिए वहां पहुंचे। उनके हाथ में खादी का झोला था, जिसके भीतर उन्होंने छोटा सा कैमरा छिपाया हुआ था। झोले में एक छेद कर रखा था ताकि कैमरे का लेंस नहीं ढंके। फोटोग्राफर एनएन मुखर्जी ने पुलिस वालों से रोते हुए कहा कि मुझे आखिरी बार अपनी दादी को देखना है। वे सिपाहियों के पैर पर गिर पड़े। उनसे मिन्नतें करने लगे कि आखिरी बार मुझे दादी को देख लेने दो। एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें इस शर्त पर जाने की छूट दी कि वे जल्द लौट आएंगे। वे तेजी से शवों की तरफ दौड़े। अपनी दादी को ढूंढने का नाटक करने लगे। इसी दौरान उन्होंने गिरते-संभलते जलती हुई लाशों की फोटो खींच ली।

नेहरू ने दिया था संसद में बयान

अगले दिन अखबार में जलती हुई लाशों की फोटो छपी। खबर पढ़कर यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गुस्से से लाल हो गए। हालांकि 15 फरवरी 1954 को जवाहर लाल नेहरू ने संसद कहा था कि, मैं किले की बालकनी में था। वहां से खड़े होकर कुंभ देख रहा था। यह अनुमान लगाया गया था कि कुंभ में 40 लाख लोग पहुंचे थे। बहुत दुख की बात है कि जिस समारोह में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुटे थे, वहां ऐसी घटना हो गई और कई लोगों की जान चली गई। तब मीडिया में खबरें छपी थीं, नेहरू हादसे से ठीक एक दिन पहले प्रयाग आए थे, उन्होंने संगम क्षेत्र में तैयारियों का जायजा लिया और दिल्ली लौट गए। लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद संगम क्षेत्र में ही थे और सुबह के वक्त किले के बुर्ज पर बैठकर दशनामी संन्यासियों का जुलूस देख रहे थे।

भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो

वहीं महाकुंभ 2025 की भगदड़ के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ मीडिया के सामने आए। उन्होंने बताया कि, गुरुवार को मुख्य सचिव और डीजीपी भी प्रयागराज जाकर घटना की समीक्षा करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ ने घटना पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, प्रशासन ने कई दौर की समीक्षा बैठकें की थीं, फिर भी यह हादसा कैसे हुआ?। इसकी गहन जांच होगी। सरकार ने मृतकों के परिवारों को 25-25 रूपए लाख की सहायता राशि देने की भी घोषणा की है। घटना का जिक्र करते हुए सीएम योगी भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि इतनी तैयारियों के बावजूद यह हादसा बेहद दुखद है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।

 

 

Tags: Kumbh Stampede 1954mahakumbh 2025Mahakumbh StampedePrayagraj Kumbh 1954Prayagraj Mahakumbh
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