Priests in Temples: सदियों से मंदिरों में पुरुषों को ही पुजारी बनाया जाता रहा है। लेकिन अब समय बदल रहा है। धीरे-धीरे महिलाओं को भी इस भूमिका में आने का मौका मिल रहा है। हालांकि, ऐसा पहले क्यों नहीं था, इसके पीछे कई धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारण हैं।
धार्मिक कारण,पूजा में रुकावट की धारणा
माना जाता है कि पुजारी भगवान और भक्तों के बीच एक माध्यम होता है। उसे वेदों, शास्त्रों और पूजा-अर्चना की पूरी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन महिलाओं को पुजारी बनने से दूर रखने की एक मुख्य वजह यह मानी जाती थी कि उन्हें मासिक धर्म होता है। इस दौरान उन्हें मंदिर में प्रवेश से रोका जाता था, क्योंकि इसे अशुद्ध माना जाता था।
सामाजिक कारण,महिलाओं को पढ़ाई से रोका गया
प्राचीन समय में महिलाओं को घर तक सीमित रखा जाता था। उन्हें पढ़ने लिखने और शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में वे धार्मिक ग्रंथों और पूजा-विधियों का ज्ञान हासिल नहीं कर पाती थीं। इसी वजह से पुजारी की भूमिका पुरुषों को दी गई।आज समय बदल चुका है। महिलाएं अब शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर रही हैं और वेद-पुराणों की जानकारी ले रही हैं। ऐसे में वे भी पुजारी बनने के लिए पूरी तरह योग्य हैं।
ऐतिहासिक कारण,मंदिरों की सुरक्षा का मामला
इतिहास में कई बार विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर हमला किया। इन हमलों में मंदिरों को लूटा और नष्ट कर दिया गया। पुजारियों को भी मार दिया जाता था। इसलिए सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुरुषों को ही पुजारी बनाया गया, ताकि वे हमलों का सामना कर सकें।धीरे धीरे यह परंपरा बन गई और पुरुषों का वर्चस्व कायम हो गया। लेकिन अब जब समाज में महिलाओं को समान अधिकार मिल रहे हैं, तो उन्हें भी पुजारी बनने से रोका नहीं जाना चाहिए।
अब महिलाएं भी बन रही हैं पुजारी
आज के दौर में बदलाव आ चुका है। कुछ मंदिरों में महिलाएं पुजारी के रूप में पूजा-अर्चना कर रही हैं। खासकर दक्षिण भारत में कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां महिलाएं मुख्य पुजारी बनी हैं और वे ही पूरे मंदिर का संचालन कर रही हैं।ये बदलाव समाज के लिए प्रेरणादायक हैं। इससे यह साबित होता है कि धर्म और परंपराएं समय के साथ बदल सकती हैं। अगर महिलाएं डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और नेता बन सकती हैं, तो वे पुजारी क्यों नहीं बन सकतीं?
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