Trump Gaza plan: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गाजा प्लान ने एक बार फिर दुनिया के सामने एक गंभीर मुद्दा खड़ा कर दिया है। ट्रंप ने गाजा के विस्थापित लोगों को मिस्र, जॉर्डन और अन्य अरब देशों में बसाने का प्रस्ताव रखा है, जिससे मुस्लिम देशों में हलचल मच गई है। फिलिस्तीनी नागरिकों के लिए यह ‘अल-नकबा’ के इतिहास को ताजा करने जैसा है, जब 1948 में हजारों लोग अपनी मातृभूमि छोड़ने के लिए मजबूर हुए थे। इस पर प्रतिक्रिया करते हुए सऊदी अरब ने आपातकालीन ‘अरब शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया है, जिसमें गाजा पर अमेरिकी कब्जे के प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी।
ट्रंप का विवादास्पद गाजा प्लान
अमेरिकी राष्ट्रपति Trump ने इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष के दौरान गाजा के लाखों विस्थापित लोगों के लिए एक नया प्रस्ताव रखा है। उनके प्रस्ताव के अनुसार, गाजा के नागरिकों को मिस्र, जॉर्डन और अन्य अरब देशों में बसाया जाएगा। इस योजना के बाद फिलिस्तीनियों के लिए किसी अन्य जगह पर रहने की संभावना को लेकर चिंता जताई जा रही है। ट्रंप की योजना इजरायल के पश्चिमी तट, गाजा पट्टी और सीमावर्ती सीरियाई क्षेत्रों पर कब्जा करने का प्रस्ताव देती है, जिसे इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी समर्थन किया है।
अरब देशों का कहना है कि फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकालना, विशेष रूप से युद्ध और मानवाधिकारों के उल्लंघन के बाद, पूरी तरह से गलत है। उनका यह मानना है कि फिलिस्तीनियों के लिए यह किसी भी दृष्टि से सही नहीं होगा और इसे धोखा देने जैसा माना जाएगा। इन देशों ने अल-नकबा की त्रासदी की यादें ताजा कर दी हैं, जब 1948 में लाखों फिलिस्तीनी अपनी मातृभूमि से बेदखल हो गए थे।
अरब देशों की एकजुटता और सऊदी का शिखर सम्मेलन
Trump के प्रस्ताव पर नाराजगी जताते हुए, मुस्लिम देशों ने एकजुट होने का फैसला किया है। सऊदी अरब ने इस पर चर्चा करने के लिए एक ‘अरब शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया है, जो 20 फरवरी को सऊदी अरब में होगा। इस शिखर सम्मेलन में मिस्र, जॉर्डन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात के नेता भाग लेंगे। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास भी शिरकत करेंगे। सऊदी अरब में होने वाली यह बैठक इस मायने में अहम होगी क्योंकि इसमें गाजा पर ट्रंप के कब्जे और उससे जुड़े विस्थापन प्रस्ताव पर खुलकर चर्चा की जाएगी। यह शिखर सम्मेलन अरब देशों को गाजा के मुद्दे पर एकजुट करने का प्रयास होगा।
ट्रंप का दवाब और अरब देशों की चिंता
अमेरिकी राष्ट्रपति Trump ने पहले ही जॉर्डन और मिस्र को उनके समर्थन न देने पर सहायता में कटौती करने की धमकी दी है। यह धमकी इन देशों के लिए चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि जॉर्डन में पहले से दो मिलियन से अधिक फिलिस्तीनी शरणार्थी रहते हैं। जॉर्डन की कुल जनसंख्या का आधा हिस्सा फिलिस्तीनी मूल का है। वहीं, मिस्र ने गाजा के पुनर्निर्माण के लिए अपने प्रस्ताव में फिलिस्तीनी लोगों को वहां बने रहने की अनुमति देने का विचार रखा है। इसके बावजूद, ट्रंप का दबाव इन देशों के लिए राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
‘अल-नकबा’ की त्रासदी और फिलिस्तीनी समाज
अल-नकबा, जिसका अर्थ अरबी में ‘आपदा’ होता है, 1948 के फिलिस्तीनी युद्ध के बाद की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस युद्ध के दौरान 700,000 से अधिक फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हो गए थे। उन्हें अपने मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, और वे पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन गए। यह घटना फिलिस्तीनी समाज और संस्कृति के लिए एक गहरी चोट थी, जिसने उनकी पहचान और इतिहास को प्रभावित किया। फिलिस्तीनी लोग हर साल 15 मई को अल-नकबा की वर्षगांठ मनाते हैं, जिसे वे ‘आपदा दिवस’ के रूप में याद करते हैं।
Trump का गाजा प्लान फिलिस्तीनी लोगों के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है। यह न केवल अरब देशों की एकजुटता की परीक्षा है, बल्कि पूरी दुनिया को एक बार फिर ‘अल-नकबा’ की याद दिलाता है। ट्रंप के इस विवादास्पद प्रस्ताव के खिलाफ मुस्लिम देशों का एकजुट होना यह दिखाता है कि गाजा और फिलिस्तीन का मुद्दा अब सिर्फ क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संकट बन चुका है।