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Death anniversary : कौन थी वह 1857 की नायिका जिसने स्वतंत्रता संग्राम में कर दिया अपना आत्मबलिदान, जिसको हमने भुला दिया

रानी तलाश कुंवरि ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी और 2 मार्च 1858 को बलिदान दे दिया। लेकिन इतिहास ने उनके योगदान को उचित स्थान नहीं दिया।

SYED BUSHRA by SYED BUSHRA
March 2, 2025
in उत्तर प्रदेश
Rani Talash Kunwari and 1857 Rebellion
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The Sacrifice of Queen Talash Kunwari : भारत की राजनीति चाहे जो भी करवाए, लेकिन वीर और वीरांगनाओं ने अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाया है। जिस देश में मदर टेरेसा को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा, वहां वीरांगना रानी तलाश कुंवरि का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाना चाहिए था। मगर इतिहासकारों और लेखकों ने उन्हें वह स्थान नहीं दिया, जिसकी वह हकदार थीं। आज उनके बलिदान दिवस पर हम उन्हें नमन करते हैं।

 जिन्होंने अंग्रेजों को दी खुली चुनौती

रानी तलाश कुंवरि बस्ती जिले की अमोढ़ा रियासत की शासक थीं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ जागरूक किया और क्रांति की ऐसी चिंगारी भड़काई कि उनके बलिदान के बाद भी महीनों तक संघर्ष जारी रहा। आज भी उनके खंडहर महल और किला उनकी वीरता की याद दिलाते हैं।

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10 महीने तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई

रानी अमोढ़ा की वीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने पूरे दस महीने तक अंग्रेजों को खुली चुनौती दी। उनके बलिदान के बाद भी स्थानीय लोगों ने संघर्ष जारी रखा। घाघरा नदी के किनारे बसे माझा क्षेत्र में उन्हें जबरदस्त जनसमर्थन हासिल था। अंग्रेजों को इस विद्रोह को दबाने के लिए फरवरी 1858 में अपनी नौसेना ब्रिगेड तक तैनात करनी पड़ी थी।

अंग्रेजों के लिए मुश्किल बना संघर्ष

स्थानीय ग्रामीणों ने अंग्रेजी नौसेना और गोरखा सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। गोंडा और फैजाबाद में भी क्रांति की लपटें तेज थीं, जिससे अंग्रेजों का इन क्षेत्रों में आना-जाना असंभव हो गया था। बस्ती-फैजाबाद मार्ग के पास स्थित अमोढ़ा रियासत कभी एक समृद्ध राजपूत रियासत थी, लेकिन 1857 की क्रांति में इसे अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए अपना सर्वस्त्र निछावर कर दिया।

1857 के संग्राम में बस्ती का योगदान

1857 की क्रांति में बस्ती जिले के दो ही रियासतों ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर मोर्चा लिया,नगर और अमोढ़ा। बाकी रियासतें अंग्रेजों के साथ थीं, लेकिन अमोढ़ा में किसान और आम लोग पूरी ताकत से अंग्रेजों का मुकाबला कर रहे थे। यह जगह धीरे-धीरे क्रांतिकारियों का मजबूत केंद्र बन गई थी, जहां तराई के कई बागी भी आकर शामिल हुए थे।

रानी अमोढ़ा ने स्वाभिमान से लड़ा हर युद्ध

1853 में रानी तलाश कुंवरि अमोढ़ा की राजगद्दी पर बैठीं। उनका शासन 2 मार्च 1858 तक चला। वह झांसी की रानी की तरह निसंतान थीं। अंग्रेजों ने उनके शासनकाल में कई तरह की मुश्किलें खड़ी करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हर चुनौती का डटकर सामना किया।

जब 1857 की क्रांति शुरू हुई, तो रानी ने अपने विश्वासपात्रों के साथ बैठक की और फैसला किया कि अंग्रेजों को भगाने के लिए स्थानीय किसानों और आम लोगों की पूरी ताकत झोंक दी जाएगी।

अंग्रेजों की चाल और निर्णायक युद्ध

5 जनवरी 1858 को, जब गोरखपुर पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया, तो उनका अगला निशाना बस्ती के विद्रोही इलाके बने। अमोढ़ा भी उनमें से एक था। अंग्रेजों ने अपने सेनापति रोक्राफ्ट के नेतृत्व में अमोढ़ा की ओर कूच किया।

इस बीच, गोरखपुर से हारकर भागे क्रांतिकारी भी बस्ती पहुंचे और अमोढ़ा में इकट्ठा हुए। इससे क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ गई और अंग्रेजी सेना को कड़ी टक्कर मिली।

अंतिम लड़ाई और रानी का बलिदान

इस युद्ध में 500 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में अपनी सेना और तोपों को अमोढ़ा भेजा। जब रानी को इस खबर का पता चला, तो उन्होंने समझ लिया कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है। 2 मार्च 1858 को, उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाय अपनी कटार से आत्मबलिदान कर लिया।

इतिहास में नाम क्यों नहीं

आज, रानी अमोढ़ा के बलिदान दिवस पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी गाथा को सदा जीवित रखने का संकल्प लेते हैं। हमने रानी तलाश कुंवरि जैसी महान वीरांगना को भुला दिया। क्या हमारी नारी शक्ति को उचित सम्मान नहीं मिलना चाहिए?

रानी तलाश कुंवरि का बलिदान 1857 की क्रांति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, लेकिन उन्हें इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। उनका संघर्ष और साहस हमें याद दिलाता है कि देश की स्वतंत्रता के लिए केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि वीरांगनाओं ने भी अपना सर्वस्व न्योछावर किया था।

Tags: 1857 RevolutionRani Talash Kunwari
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SYED BUSHRA

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