कानपुर ऑनाइन डेस्क। बुंदेलखंड अपनी संस्कृति और लोकगीत व परम्पराओं के लिए जाना जाता है। यहां पर कई ऐतिहासिक प्राचीन मंदिर हैं और जिनकी अलग गाथा है। कुछ ऐसी ही कहानी जालौन जनपद की है। यहां आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) पर एक अनोखी परंपरा मनाई जाती है। सालों से यहां कुंवारी कन्याएं परंपरागत रूप से एक राक्षस के पैरों को पूजती हैं। पूजा-अर्चना के बाद रासक्ष से अच्छे पति की वरदान मांगती है।
भगवान कृष्ण की आराधना की
पौराणिक कथाओं के अनुसार भामासुर (सुआटा) नाम का एक राक्षस हुआ करता था, जो कुंवारी लड़कियों को बंधक बनाकर उनसे अपनी पूजा कराता था। साथ ही उनसे जबरन शादी करता था, जिससे परेशान होकर कुंवारी कन्याओं ने भगवान कृष्ण की आराधना की। प्रसन्न होकर कृष्ण ने कुंवारी कन्याओं को वरदान दिया कि इस राक्षस का अंत टेसू नाम के एक वीर योद्धा द्वारा होगा। बाद में भामासुर राक्षस ने राजकुमारी झिझियां सहित कई कुंवारी कन्याओं को बंधक बना लिया और उनसे शादी की कोशिश की।
कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वर मांगा
तभी भगवान के वरदान स्वरूप वीर योद्धा टेसू ने भामासुर राक्षस का अंत कर सभी को मुक्त करा दिया और राजकुमारी झिंझिया से विवाह कर लिया। जब राक्षस का अंत हुआ तब शरद पूर्णमासी की रात थी। जब राक्षस भामसुर (सुआटा) मरने वाला था तभी उसने भगवान की आराधना की। उसकी आराधना पर भगवान ने उसे दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। तब राक्षस ने कुंवारी कन्याओं से पैर पूजने का वर मांगा।
वीर पति पाने की मनोकामना
इस वर के बाद तब से शरद पूर्णिमा के दिन सभी कुंवारी कन्याएं सुआटा नामक राक्षस के पैर पूजती है और पैर पूजने के बाद ये सभी लड़कियां टेसू और झिझियां की शादी कराकर टेसू जैसे वीर पति पाने की मनोकामना करती है। टेसू और झिझियां के विवाह शुरू होने का कार्यक्रम पूरे एक महीने चलता है जिसमे कुंवारी लड़कियां छोटे से मटके में कई छेद कर उसमे दीप जलाती और घर- घर जाकर धन मांगती हैं। बाद में शरद पूर्णिमा के दिन लड़कियां एक दीवार पर सुआटा राक्षस की भी गोबर से प्रतिमा बनाती हैं।
सभी लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं
इस कार्यक्रम में मुहल्ले के सभी लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। महिलाएं झिंझिया की शादी पर मंगल गीत गाती हैं और झिझिया को सिर पर रखकर नाचती-गाती हैं। बाद में कुंवारी लड़कियां राक्षस की पूजा करती हैं। लड़कों द्वारा भी लकड़ी और कागज से टेसू का पुतला बनाया जाता है, जिसे वह भी घर-घर ले जाकर चन्दा मांगते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन बारात लेकर वह झिंझिया के घर पहुंचते हैं। जहां वादी धूमधाम से टेसू झिंझिया का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। विवाह सम्पन्न होने के बाद लड़के पारंपरिक तरीके से राक्षस की प्रतिमा को तहस-नहस कर देते हैं।