दिल्ली हाई कोर्ट ने 2013 के एक हत्या मामले में आरोपी के डीएनए परीक्षण की अनुमति दी है। इस आदेश का उद्देश्य आरोपी की संलिप्तता की सच्चाई का पता लगाना है। अदालत ने निर्देश दिया है कि पीड़ित और आरोपी के खून से सने कपड़ों और आरोपी के रक्त के नमूने की फोरेंसिक जांच की जाए।
क्या है मामला?
मई 2013 में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। मृतक के पिता ने आरोपी के खिलाफ डीएनए जांच की मांग की थी ताकि यह साबित किया जा सके कि वही उनके बेटे की मौत का जिम्मेदार है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद पीड़ित के पिता ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की, जहां न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने डीएनए जांच की मंजूरी दे दी।
हाई कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि न्याय की सटीकता के लिए सच्चाई सामने आनी चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि डीएनए परीक्षण से आरोपी के दोषी या निर्दोष होने का पता लगाया जा सकता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस जांच से आरोपी को भी फायदा हो सकता है, इसलिए इसे केवल अभियोजन पक्ष के समर्थन में नहीं माना जाना चाहिए।
वैज्ञानिक साक्ष्य का महत्व
अदालत ने माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता काफी पुराने हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रगति के कारण कानूनी प्रक्रियाओं में बदलाव जरूरी हो गए हैं। न्यायमूर्ति कृष्णा ने संविधान के अनुच्छेद 51-A (h) और (j) का हवाला दिया, जो वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की बात करता है।
डीएनए जांच का कानूनी पक्ष
अदालत ने स्पष्ट किया कि डीएनए जांच आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है। यदि डीएनए प्रोफाइल तैयार किया जाता है, तो जांच एजेंसियां आरोपी के रक्त के नमूने कानूनी रूप से मांग सकती हैं। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि 15 दिनों के भीतर सभी नमूने फोरेंसिक लैब भेजे जाएं और दो महीने के भीतर रिपोर्ट पेश की जाए।
आरोपी ने क्यों किया विरोध?
आरोपी ने डीएनए जांच का विरोध करते हुए कहा कि यह बहुत देरी से की जा रही है और इससे अभियोजन पक्ष को अपना केस मजबूत करने का मौका मिलेगा। इसके अलावा, उन्होंने दावा किया कि उनके कपड़ों की जब्ती अभी ट्रायल में साबित नहीं हुई है।
न्याय के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य जरूरी
अदालत ने माना कि 2013 में जब्त किए गए कपड़ों पर डीएनए के निर्णायक सबूत मिलने की संभावना कम है, लेकिन फिर भी यह वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया को रोके जाने का आधार नहीं हो सकता। अदालत ने सवाल किया कि क्या आधुनिक न्यायिक साधनों को पुराने तरीकों की वजह से नकार देना चाहिए? इसका जवाब अदालत ने ‘नहीं’ में दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला बताता है कि वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए किया जाना चाहिए। डीएनए परीक्षण से हत्या के इस मामले में सच्चाई सामने आने की संभावना बढ़ गई है।