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बिजली निजीकरण पर क्यों गरमाया उत्तर प्रदेश? दक्षिणांचल-पूर्वांचल के मॉडल से लेकर कर्मचारियों के आक्रोश तक, जानिए पूरा मामला बिंदुवार

उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल में नई व्यवस्था लागू करने की तैयारी है, लेकिन कर्मचारी संगठनों और उपभोक्ताओं ने विरोध का बिगुल बजा दिया है।

by Mayank Yadav
May 29, 2025
in Latest News, उत्तर प्रदेश
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UP Power
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UP Power Corporation: उत्तर प्रदेश की UP Power व्यवस्था एक बार फिर निजीकरण की बहस के केंद्र में आ गई है। इस बार मुद्दा दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगमों के संभावित निजीकरण का है। प्रबंधन का दावा है कि लगातार बढ़ते घाटे को रोकने और सेवाएं सुधारने के लिए यह जरूरी है। वहीं, इंजीनियर और कर्मचारी संगठन इस फैसले को उपभोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के खिलाफ मान रहे हैं। निजीकरण की प्रक्रिया के विरोध में कई बार आंदोलन हुए हैं और अब फिर विरोध तेज हो गया है। आइए इस मुद्दे को बिंदुवार तरीके से समझते हैं – इसकी पृष्ठभूमि, कारण, पक्ष-विपक्ष की दलीलें, संभावित असर और अब तक की घटनाओं का पूरा ब्यौरा।

1. निजीकरण की ताज़ा पहल: किन क्षेत्रों में और किस मॉडल पर?

  • पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के कुछ हिस्सों का निजीकरण प्रस्तावित है।
  • इन दोनों निगमों को पांच नई कंपनियों में बांटा जाएगा: पूर्वांचल तीन कंपनियों और दक्षिणांचल दो कंपनियों के बीच बंटेगा।
  • निजीकरण का मॉडल: 51% हिस्सेदारी निजी क्षेत्र की कंपनी के पास और 49% सरकार के पास होगी।
  • प्रबंधन ढांचा:
    • नई कंपनियों के अध्यक्ष मुख्य सचिव होंगे।
    • एमडी निजी कंपनी का प्रतिनिधि होगा।
    • निदेशक मंडल में दोनों पक्षों के सदस्य होंगे।

2. बिजली कंपनियों का घाटा: निजीकरण की प्रमुख वजह

  • उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनियां इस समय ₹1.10 लाख करोड़ से अधिक के घाटे में हैं।
  • 2000 में यह घाटा केवल ₹77 करोड़ था, जो आज कई गुना बढ़ चुका है।
  • घाटा कम करने के कई प्रयास हुए – सुधार, वसूली, सब्सिडी, लेकिन असफलता हाथ लगी।
  • 2020-21 में सरकार ने घाटा कम करने के लिए ₹8,000 करोड़ की सब्सिडी दी थी।
  • अनुमान है कि यह राशि 2024-25 में ₹46,000 करोड़, 2025-26 में ₹50-55 हजार करोड़, और 2026-27 में ₹60-65 हजार करोड़ तक पहुंच सकती है।

3. पावर कॉरपोरेशन का पक्ष: क्यों जरूरी है निजीकरण?

  • लगातार सब्सिडी देने से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता जा रहा है।
  • निजी कंपनियों के आने से बेहतर सेवा, कुशल प्रबंधन और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
  • इससे सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि क्षेत्रों पर फोकस करने का मौका मिलेगा।
  • अनुभव के उदाहरण:
    • आगरा और ग्रेटर नोएडा में पहले से निजीकरण मॉडल काम कर रहा है।
    • दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और ओडिशा में भी सफलतापूर्वक लागू है।

4. इंजीनियर-कर्मचारी संगठनों की आपत्ति: घाटे की असली वजह कुछ और?

  • संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे के मुताबिक, घाटे की असली वजह महंगे बिजली खरीद करार हैं।
  • 2024-25 में ही बिना बिजली खरीदे ₹6,761 करोड़ का भुगतान करना पड़ा।
  • यह करार इंजीनियरों द्वारा नहीं, बल्कि प्रशासन द्वारा किए गए थे।
  • बकाया बिजली बिल – ₹1.15 लाख करोड़ से ज्यादा। अगर वसूली हो जाए, तो घाटा खत्म हो सकता है।
  • प्राइवेट कंपनियां ग्रामीण उपभोक्ताओं को नजरअंदाज करेंगी क्योंकि वहां रेवेन्यू कम है।
  • ग्रेटर नोएडा का उदाहरण: किसान और ग्रामीण इलाकों को बिजली कम मिलती है; फोकस इंडस्ट्रियल और कमर्शियल उपभोक्ताओं पर।

5. क्या उपभोक्ताओं को मिलेगी सस्ती और बेहतर बिजली?

  • UP Power कॉरपोरेशन: टैरिफ का निर्धारण राज्य विद्युत नियामक आयोग करता है, इसलिए निजीकरण से बिजली महंगी नहीं होगी।
  • इंजीनियरों की दलील:
    • जब सरकार सब्सिडी नहीं देगी, तो टैरिफ बढ़ेगा।
    • ग्रामीण इलाकों में सब्सिडी की जरूरत ज्यादा है, जो प्राइवेट कंपनियों की प्राथमिकता नहीं है।
    • अगर प्राइवेट कंपनी को भी सब्सिडी देनी है तो सरकारी व्यवस्था ही क्यों न रखी जाए?

6. कर्मचारी हितों पर असर: नौकरी बचेगी या जाएगी?

  • पावर कॉरपोरेशन:
    • कर्मचारियों को तीन विकल्प मिलेंगे:
      1. उसी स्थान पर कार्य जारी रखें – सेवा शर्तें पूर्ववत या बेहतर।
      2. यूपीपीसीएल या अन्य डिस्कॉम में समायोजन।
      3. स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति (VRS)।
  • संघर्ष समिति:
    • किसी भी बैठक में सेवा शर्तों पर चर्चा नहीं हुई।
    • छोटे-छोटे निजीकरण क्षेत्रों में कोई भी कर्मचारी काम नहीं करना चाहेगा।
    • रियायती बिजली, भत्ते, वेतन का निर्धारण अब निजी कंपनियों पर निर्भर होगा।
    • अस्थायी कर्मचारियों की नौकरी का कोई भविष्य नहीं।

7. उपभोक्ता परिषद की भूमिका

  • UP Power राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद कई बार निजीकरण के विरोध में नियामक आयोग में याचिकाएं दायर कर चुकी है।
  • परिषद का कहना है कि वितरण व्यवस्था में सुधार उपभोक्ताओं की सुविधा से जुड़ा है, न कि लाभ-हानि से।

8. अब तक निजीकरण के प्रयास – कब-कब हुआ और क्या नतीजा निकला?

वर्षपहलविरोध और नतीजा
1993NPCL को ग्रेटर नोएडा में बिजली वितरणतब भी विरोध हुआ, लेकिन व्यवस्था लागू हुई
2006लेसा के ग्रामीण क्षेत्रों में फ्रेंचाइजीउपभोक्ता परिषद ने याचिका दायर की, रोक लग गई
2010आगरा शहर की जिम्मेदारी टोरंट कोआंदोलन हुए, लेकिन सरकार अडिग रही
2013PPP मॉडल पर कई शहरों में योजनायाचिका और विरोध के कारण योजना अटक गई
2020पूर्वांचल में निजीकरण प्रयासविरोध के बाद इंजीनियरों से लिखित समझौता हुआ – सहमति के बिना कोई निर्णय नहीं

9. बिजली व्यवस्था में बदलाव का ऐतिहासिक क्रम

वर्षबदलाव
1959राज्य विद्युत परिषद का गठन
2000UPPCL का गठन, उत्पादन और जल इकाइयां बनीं
2003ट्रांसमिशन व वितरण के लिए 4 कंपनियां गठित

10. उपसंहार: आगे क्या हो सकता है?

  • फिलहाल 29 मई को प्रस्तावित कार्य बहिष्कार संघर्ष समिति ने स्थगित कर दिया है।
  • संघर्ष समिति का रुख आगे सरकार की वार्ताओं पर निर्भर करेगा।
  • यदि निजीकरण की प्रक्रिया कर्मचारियों की सहमति और उपभोक्ता हित में नहीं हुई, तो आंदोलन और कानूनी लड़ाई की आशंका बनी हुई है।
  • सरकार को चाहिए कि वह घाटे की सच्चाई, करारों की समीक्षा और बिल वसूली जैसे बिंदुओं पर पारदर्शिता लाए।
  • किसी भी नीति का अंतिम उद्देश्य उपभोक्ता संतोष, कर्मचारी हित और टिकाऊ व्यवस्था होना चाहिए।

UP Power के निजीकरण पर मचा बवाल सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि कर्मचारियों, उपभोक्ताओं और सरकारी नीति के टकराव का प्रतीक बन गया है। घाटे की असली वजह, उपभोक्ता संरक्षण, सेवा की गुणवत्ता, कर्मचारी हित – इन सभी पहलुओं की स्पष्टता और जवाबदेही के बिना यह विवाद सुलझना मुश्किल है। सरकार को चाहिए कि वह संवाद और पारदर्शिता को प्राथमिकता दे, वरना यह संकट और गहराता चला जाएगा।

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