Viral post: भारत में जब भी किसी की गरीबी या मेहनत भरी जिंदगी की बात होती है, तो अक्सर “दो जून की रोटी” की कहावत सुनने को मिलती है। लोग इसे गरीबी और रोजमर्रा की जरूरतों से जोड़ते हैं। लेकिन इस मुहावरे में जो “जून” शब्द है, उसका मतलब महीना नहीं बल्कि समय होता है।
“जून” शब्द का असली मतलब क्या है?
“जून” शब्द अवधी भाषा से आया है, जो उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर जैसे इलाकों में बोली जाती है। यहां “जून” का मतलब होता है वक्त। इस हिसाब से “दो जून की रोटी” का मतलब है। दिन में दो बार खाने का इंतजाम करना।
ये कहावत बताती है कि एक गरीब इंसान के लिए सुबह और शाम के खाने का भी इंतजाम करना कितना मुश्किल होता है। आज भी भारत के करोड़ों लोग सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत करते हैं।
गरीबों के लिए रोज की चुनौती
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में आज भी करीब 19 से 20 करोड़ लोगों को दो वक्त भरपेट खाना मिलना भी मुश्किल है। ये लोग दिनभर मेहनत करते हैं, लेकिन तब भी पेट भर खाना मिलना एक सपना जैसा होता है।
गर्मी के मौसम में और बढ़ जाती है परेशानी
“जून” शब्द को लोग अक्सर जून के महीने से जोड़ते हैं, क्योंकि ये साल का सबसे गर्म महीना होता है। इस दौरान मजदूरों और रेहड़ी-पटरी वाले लोगों के लिए काम करना और भी मुश्किल हो जाता है। दोपहर के वक्त गर्मी इतनी तेज होती है कि सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहता है, जिससे मजदूरों को काम नहीं मिलता। ऐसे में दिन में दो बार खाने का इंतजाम करना उनके लिए बड़ी चुनौती बन जाती है।
मेहनत की कमाई और जिंदगी की सच्चाई
“दो जून की रोटी” केवल एक कहावत नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जिंदगी की हकीकत है। इससे समझ आता है कि कितने लोग आज भी दिन-रात मेहनत करके सिर्फ इतना चाहते हैं कि उनके घर में सुबह और शाम का खाना बन सके।