Jagannath Rath: ओडिशा में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में श्रद्धा और भक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक मानी जाती है। लाखों लोग इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ को अपने हाथों से खींचकर मोक्ष की कामना करते हैं। इस साल यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई 2025 को समाप्त होगी। रथ यात्रा के लिए हर साल तीन नए रथ बनाए जाते हैं।भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए। ये रथ खास लकड़ी से तैयार होते हैं और इनकी बनावट, ऊंचाई और रंग भी अलग-अलग होते हैं।
पुराने रथों का क्या होता है?
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि जब हर साल नए रथ बनाए जाते हैं तो पुराने रथों का क्या होता है? दरअसल, यात्रा समाप्त होने के बाद इन रथों को तोड़कर उनके हिस्सों को सावधानीपूर्वक अलग किया जाता है। फिर उनके कुछ पवित्र हिस्सों की नीलामी होती है।
रथ के हिस्सों की नीलामी से भक्तों को मिलता है आशीर्वाद
रथों के टुकड़ों की नीलामी एक पवित्र परंपरा है। भक्त इन टुकड़ों को अपने घर ले जाकर उनकी पूजा करते हैं। रथ का एक छोटा सा हिस्सा भी अपने पास रखना भगवान का आशीर्वाद पाने जैसा माना जाता है। इन हिस्सों की नीलामी के लिए भक्तों को पहले से ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है। श्री जगन्नाथ मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट पर पूरी प्रक्रिया दी जाती है। भक्तों के बीच रथ के पहिए सबसे ज्यादा मांग में रहते हैं। मंदिर प्रशासन यह भी सुनिश्चित करता है कि इन पवित्र चीजों का कोई दुरुपयोग न हो।
मंदिर की रसोई में होती है रथ की लकड़ी का उपयोग
जो लकड़ी नीलामी में नहीं जाती, उसका इस्तेमाल मंदिर की रसोई में महाप्रसाद पकाने के लिए किया जाता है। यह परंपरा और भी अद्भुत है, क्योंकि जिस लकड़ी से भगवान का रथ बनता है, वही लकड़ी उनके भोग के प्रसाद को पकाने में काम आती है।यह सिर्फ लकड़ी नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और सेवा का प्रतीक है। यही कारण है कि हर साल की रथ यात्रा लोगों के दिलों को जोड़ती है और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है।