Lord Jagannath’s Rath Yatra Ritual Chhera Pehra : पुरी (उड़ीसा) में भगवान जगन्नाथ का एकांतवास अब समाप्त हो चुका है। माना जाता है कि इस दौरान भगवान बीमार रहते हैं और फिर पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। अब वे 27 जून को अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भव्य रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देंगे। इस मौके का इंतजार भक्त बड़े उत्साह के साथ कर रहे हैं। देश-विदेश से श्रद्धालु पुरी पहुंचने लगे हैं।
रथ यात्रा की शुरुआत और छेरा पहरा की रस्म
भगवान जगन्नाथ की 9 दिन चलने वाली रथ यात्रा का आरंभ छेरा पहरा नामक रस्म से होता है। यह रस्म यात्रा के पहले दिन निभाई जाती है, जो बेहद विशेष मानी जाती है। इस रस्म में पुरी के गजपति महाराज, जिन्हें भगवान का पहला सेवक माना जाता है, स्वर्ण झाड़ू से रथ के आगे की भूमि को साफ करते हैं। साथ ही चंदन मिले हुए पवित्र जल को रास्ते में छिड़कते हैं। इसके बाद ही भक्त रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू करते हैं।
छेरा पहरा का धार्मिक और सामाजिक महत्व
छेरा पहरा केवल एक रस्म नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है। यह परंपरा दर्शाती है कि भगवान की नजर में सभी एक समान हैं , फिर चाहे कोई राजा हो या आम इंसान। जब स्वयं गजपति राजा झाड़ू लगाकर भगवान के रथ का मार्ग साफ करते हैं, तो वह समर्पण, सेवा और विनम्रता का प्रतीक बन जाते हैं। यह रस्म भक्तों को यह सिखाती है कि भगवान के सामने सब बराबर हैं और सेवा भाव से किया गया हर कार्य पूजा के समान होता है।
रथ यात्रा में भाग लेने के लाभ
इस रथ यात्रा में शामिल होना बेहद पुण्य का कार्य माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति इस यात्रा में भाग लेता है, उसके जीवन में सकारात्मकता आती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही दुख, रोग और नकारात्मकता का अंत होता है। यह यात्रा सुख-शांति और समृद्धि भी प्रदान करती है। यही वजह है कि हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं।
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