नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। बिहार चुनाव से ठीक पहले देश की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो गया। जाट समुदाय से आने वाले धाकड़ हलधर नेता जगदीश धनकड़ ने मानसून सत्र के दौरान उपराष्ट्रपति से रिजाइन कर तहलका मजा दिया। खबर मीडिया पर आई तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ। गूगल गुरू के शरण में भारतवासियों को जाना पड़ा। राजनेताओं को भनक लगी तो वह भी बात मानने को तैयार नहीं थे। यूपी, बिहार से लेकर राजस्थान के सफेदपेश दिल्ली में बैठे अपने करीबियों को फोन लगाकर रिजाइन वाले चिट्ठी को लेकर पूछताछ करने लगे। रात होते-होते धंधेरे में अंधेरा छटा और किसान नेता के इस्तीफे की खबर पुख्ता हो गई।
राजस्थान के छोटे से गांव किठाना में जन्मे जगदीप धनखड़ ने गांव की पगडंडियों से होते हुए देश के उपराष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया। पैदल स्कूल जाने वाले इस छात्र ने कानून की पढ़ाई के बाद वकालत में नाम कमाया और राजनीति में आकर कई अहम पदों को संभाला.। उनके संघर्ष, मेहनत और सफलता की प्रेरणादायक कहानी, जो आज युवाओं के लिए मिसाल है। उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए धनकड़ ने निडर होकर बोले। कभी स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। जब किसानों की बात राज्यसभा में आती तो वह खुद आगे आकर वकालत करते। वक्त ऐसा भी आया, जब उन्होंने इशारों-इशारों में बीजेपी सरकार को भी नसीहत दी। सुप्रीम कोर्ट को भी खरी-खरी सुनाई। सभी को यकीन था कि धनकड़ अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।
लेकिन भारत की राजनीति में कब क्या हो जाए, ये किसी को नहीं पता। कब कौन नेता क्या बन जाए और किसे अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ जाए ये किसी को नहीं पता। कुछ ऐसा ही नजारा सोमवार को देखने को मिला। मानसून सत्र के दौरान देश के उपराष्ट्रपति जगदीश धनकड़ से स्वास्थ्य का हवाला देकर अपने पद से रिजाइन कर दिया। उन्होंने त्यागपत्र राष्ट्रपति के पास भेजकर इस पद से खुद को अलग कर लिया। जगदीश धनकड़ किसान परिवार से आते हैं और खुद को हलधर भी मानते हैं। जगदीश धनकड़ बीजेपी के कद्दावर नेता हैं। उन्हें बीजेपी ने 30 जुलाई 2019 को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था। उन्होंने 18 जुलाई 2022 तक सेवा दी। इसके बाद वो भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने। आखिरकार उपराष्ट्रपति पद की तारीख भी उन्होंने ही मुकर्रर की और 21 जुलाई को इस संवैधानिक कुर्सी को अलविदा कह दिया।
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब संसद का मानसून सत्र शुरू ही हुआ है। ऐसे में अब ये जानना जरूरी है कि आखिर उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है और कौन नेता अब इस कुर्सी पर बैठेगा। तो चलिए हम आपको बताते हैं कि देश का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा। दरअसल, बिहार में इसी साल चुनाव होने हैं। नीतीश कुमार फिलहाल बिहार के सीएम हैं। एनडीए के नेता ये चाहते हैं कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति से खुद को दूर करें और पटना की कुर्सी किसी युवा नेता को सौंपे। जानकार बताते हैं कि ऐसे में बीजेपी ने बड़ा प्लान तैयार किया है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी बिहार के सुशासन बाबू को उपराष्ट्रपति बनाकर एक तीर से कई निशाने लगा सकती है। जहां नीतीश कुमार को बड़ा पद देकर ओबीसी समाज में अपनी बैठ बनाएगी तो दूसरी तरफ बिहारियों को युवा सीएम चेहरा देकर लालू की लालटेन की रोशनी कम करेगी।
सूत्र बताते हैं कि बीजेपी हाईकमान ने ऑपरेशन बिहार को लेकर पहले से ही रोडमैप तैयार कर लिया है। अगर बीजेपी के बनाया गया रोडमैप कारगर होता है तो देश को ओबीसी समाज से आने वाले नीतीश कुमार इस कुर्सी पर बैठ सकते हैं। जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने एक और नाम रेस पर बरकरार रखा है। ग्वालियर घराने की महारानी वसुंधरा राजे भी उपराष्ट्रपति पद की रेस में बताई जा रही हैं।ये तो हुई भविष्य के उपराष्ट्रपति के नाम। अब हम आपको बताते हैं कि उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है। उपराष्ट्रपति के चुनाव में सिर्फ लोकसभा और राज्यसभा के सांसद हिस्सा लेते हैं। इस चुनाव में मनोनीत सदस्य भी हिस्सा लेते हैं। जबकि, राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा सांसद और सभी राज्यों की विधानसभा के विधायक वोटिंग करते हैं। उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए भारत का नागरिक होना जरूरी है। उसकी उम्र 35 साल से ज्यादा होनी चाहिए और वो राज्यसभा का सदस्य चुने जाने की सारी योग्यताओं को पूरा करता हो।
उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को 15 हजार रुपये भी जमा कराने होते हैं। ये जमानत राशि की तरह होते हैं। चुनाव हार जाने पर या 1/6 वोट नहीं मिलने पर ये राशि जमा हो जाती है। उपराष्ट्रपति चुनाव दोनों सदनों के सांसद हिस्सा लेते हैं। इनमें राज्यसभा के 245 और लोकसभा के 543 सांसद हिस्सा लेते है। राज्यसभा सदस्यों में 12 मनोनित सांसद भी इसमें शामिल होते हैं। उपराष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति यानी प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन सिस्टम से होता है। इसमें वोटिंग खास तरह से होती है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। वोटिंग के दौरान वोटर को एक ही वोट देना होता है, लेकिन उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है। बैलेट पेपर पर वोटर को पहली पसंद को 1, दूसरी को 2 और इसी तरह से प्राथमिकता तय करनी होती है। उपराष्ट्रपति चुनाव का एक कोटा तय होता है। जितने सदस्य वोट डालते हैं, उसकी संख्या को दो से भाग देते हैं और फिर उसमें 1 जोड़ देते हैं।
मान लीजिए कि चुनाव में 787 सदस्यों ने वोट डाले, तो इसे 2 से भाग देने पर 393.50 आता है। इसमें 0.50 को गिना नहीं जाता, इसलिए ये संख्या 393 हुई। अब इसमें 1 जोड़ने पर 394 होता है। चुनाव जीतने के लिए 394 वोट मिलना जरूरी है। इन सारे वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के जरूरी कोटे या उससे ज्यादा वोट हो जाते हैं, तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। लेकिन दूसरे राउंड में भी अगर कोई विजेता नहीं बन पाता, तो फिर से वही प्रक्रिया दोहराई जाती है। ये प्रक्रिया तब तक होती है, जब तक कोई एक उम्मीदवार न जीत जाए। जानकार बताते हैं कि जल्द ही देश को उपराष्ट्रपति मिल सकता है। बीजेपी का दोनों सदन में बहुमत है। ऐसे में एनडीए के ही नेता के उपराष्ट्रपति बनने का प्रबल संभावना है।