नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। बिहार की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत मिल रहे हैं। लालू यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने नीतीश सरकार के ‘तख्तापलट’ का अजब-गजब का प्लान बनाया है। लालू के बनाए चक्रव्यूह को कामयाब बनाने के लिए तेजप्रताप यादव सियासी पिच पर ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे हैं। अखिलेश यादव भी बिहारी तेजू का साथ दे रहे हैं। पीके भी एक्टिव हैं। चिराग पासवान भी अपनी ही सरकार के खिलाफ हमलावर है। चिराग को पीके के शब्द पसंद आ रहे हैं। तेज प्रताप यादव भी उन्हें भा रहे हैं। ऐसे में चर्चा है कि किसी भी वक्त ‘मोदी के हनुमान’ एनडीए का साथ छोड़ सकते हैं। हालांकि ये चर्चे सिर्फ सोशल मीडिया पर ही गर्दा उड़ा रहे हैं। जबकि हकीकत में इसके पीछे कुछ अलग ही दाल गल रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव की कभी भी डुगडुगी बज सकती है। चुनाव आयोग कभी भी इलेक्शन की तारीखों का ऐलान कर सकता है। ऐसे में गया से लेकर पटना तक राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठकों का सिलसिला जारी है। रैली, जनसभाएं हो रही हैं। लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। सियासी वाररूम में रणनीति बनाई जा रही है। जीत-हार को लेकर जबरदस्त घमासान छिड़ा हुआ है। इंडिया गठबंधन और एनडीए एक-दूसरे के अंदर दरार डालने के मिशन में जुटे हैं। चुनावी मौसम के बीच एनडीए की पार्टनर लोजपा (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य चिराग पासवान अपने अलहदा तेवर के कारण अबूझ पहेली बन गए हैं। वे नरेंद्र मोदी सरकार पर अंगुली उठाने से परहेज नहीं करते। वे एनडीए की विरोधी विपक्षी पार्टियों के सुर में सुर मिलाने से भी परहेज नहीं कर रहे। नीतीश कुमार से भी वह सीधे पंगा ले रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि चिराग पासवान कुछ बड़ा कर सकते हैं। उन्होंने इसके लिए खास प्लान बनाया है। ं चिराग सुशासन बाबू की सरकार को घेर रहे हैं। बिहार में अपराध को लेकर चिंता जता रहे हैं। चिराग की तरह ही जैसे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के तेजस्वी यादव और जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर चिंतित दिखते हैं। इतना ही नहीं, नीतीश कुमार की कब्र खोदने में दिन-रात एक किए बिहार का भ्रमण कर रहे प्रशांत किशोर और चिराग पासवान का परस्पर प्रेम भी झलकता रहा है। दोनों एक-दूसरे की प्रशंसा ऐसे करते हैं, जिससे बिहार में एक नए सियासी गठबंधन की आहट का भ्रम होने लगता है। जानकार बताते हैं कि जिस तरह से चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव का ऐलान किया है। इससे बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में बड़े उलटफेर देखने को मिल सकते हैं। चिराग पासवान बिहार की सियासत के किंगमेकर की भूमिका में भी नजर आ सकते हैं।
चिराग के बगावत की कहानी 2025 की नहीं है। इसकी बुनियाद तो 2020 में पड़ गई थी। जब विधानसभा चुनाव में चिराग ने नीतीश को बड़ी चोट पहुंचाई थी। जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार कर चिराग ने नीतीश कुमार को कहीं का नहीं छोड़ा था। नरेंद्र मोदी ने जब तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाई तो चिराग पासवान को सेंट्रल कैबिनेट में शामिल किया गया। सरकार के कार्यकाल के अभी 100 दिन भी पूरे नहीं हुए थे कि चिराग पासवान ने लैटरल एंट्री के मोदी सरकार के फैसले पर अपने तेवर दिखाए। विपक्ष सरकार के इस निर्णय पर हंगामा कर रहा था। चिराग पासवान भी उनके सुर में सुर मिलाने लगे थे। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में जब सब कोटा तय करने का फैसला तो दिया तो उसे न मानने का दबाव अपनी सरकार पर चिराग ने बनाया। यहां भी वे विपक्ष के साथ थे। ऐसे कई मौके आए, जब चिराग ने अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
बिहार में इस साल विधानसभा का चुनाव होना है। जाहिर है कि चिराग की पार्टी भी इस चुनाव में उतरेगी। उनके पास बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के कंसेप्ट के अलावा कोई मुद्दा तो है नहीं। यही वजह है कि वे बिहार में क्राइम की स्थिति पर विपक्ष की तरह नीतीश कुमार की सरकार पर हमलावर हैं। उन्हें कभी बिहार लहूलुहान लगता है तो कभी प्रशासन अपराध नियंत्रण में पूरी तरह फेल नजर आता है। वे कहते हैं कि प्रशासन निकम्मा हो गया है। हत्या, बलात्कार जैसे अपराध हो रहे हैं। इसे चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। यह संभव है, लेकिन अपराधों पर अंकुश लगाना तो प्रशासन का ही काम है। प्रशासन इसमें फेल है। बिहार के लोगों के लिए यह स्थिति भयावह है। उन्हें इस बात पर दुख है कि वे ऐसी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। अपराध को लेकर चिराग सीएम नीतीश कुमार को पत्र भी लिख चुके हैं।
चिराग कहते हैं कि उन्हें खत्म करने की कोशिश होती रही है। उनकी पार्टी में विभाजन कराया गया। परिवार को विभाजित किया गया। उन्हें बम से उड़ाने की साजिश रची जा रही है। वे खुद विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा करते हैं और सभी 243 सीटों पर कैंडिडेट उतारने की बात करते हैं। वे उन इलाकों में सभाएं कर रहे हैं, जहां एनडीए के दूसरे नेताओं का प्रभाव माना जाता है। वे सरकार की आलोचना विपक्ष की तरह करते हैं। एनडीए के खिलाफ बिहार में अलख जगा रहे जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर से अपने मधुर रिश्तों की बात बताते हैं। वे यह भी कहते हैं कि एनडीए छोड़ेंगे नहीं। उनकी इस तरह की विरोधाभाषी बातों से कन्फ्यूजन स्वाभाविक है।
जानकार मानते हैं कि उनका सारा खेल टिकटों के लिए है। एलजीपीआर के सूत्रों की मानें तो पार्टी ने 41 सीटें चिह्नित की हैं। इसकी सूची बीजेपी को उन्होंने सौंप दी है। इन सीटों में ज्यादातर जेडीयू के हिस्से की रही हैं। जाहिर है कि जेडीयू इसके लिए तैयार नहीं होगी। चूकि मौजूदा विधानसभा में एलजीपीआर का कोई विधायक नहीं है, इसलिए चिराग को सीटें देने में परेशानी तो होगी ही। वैसे भी चिराग को इतनी सीटें मिलनी मुश्किल हैं। बहुत हुआ तो उन्हें 15-20 सीटें मिल सकती हैं। इसलिए चिराग ने पहले से ही दबाव बनाना शुरू कर दिया है। नीतीश कुमार पर हमलावर होने की एक ही वजह है कि टिकटों के बंटवारे में निर्णय उन्हीं को लेना है। चिराग ऐसे तेवर दिखा कर शायद नीतीश को डराना चाहते हों कि उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे 2020 के रास्ते पर भी जा सकते हैं।