Malegaon Blast Case : मालेगांव ब्लास्ट केस के चलते अदालत के एक तरफा फैंसले के बाद हर तरफ आक्रोश का माहौल है वहीं इस केस में आरोपियों की रिहाई को लेकर उठे सवालों के जवाब में अदालत ने साफ करते हुए कहा है कि इस केस के दर बाहर बाइक किसने पार्क की थी, पत्थरबाजी किसने की थी, और आखिर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया किसने था, इन सभी बातों को लेकर अभी तक कोई भी पुख्ता सबूत हासिल नहीं हो पाया है।
आरोप सिद्ध करने के नहीं है सबूत
मालेगांव केस के अंदर कोर्ट के स्पेशल जज लाहोटी ने फैंसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में कुछ आरोपों को अदालत की ओर से खारिज किया गया है। जानकारी के मुताबिक कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जो भी सबूत सामने आए हैं वे सभी दोष सिद्ध करने के लिए बिल्कुल भी काफी नहीं हैं। इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि कर्नल पुरोहित द्वारा RDX लाने का कोई सबूत है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक अदालत ने फैंसला सुनाते हुए कहा कि धमाके वाली जगह पर बाइक किसने पार्क की थी? इसका कोई भी सबूत नहीं है। अदालत ने साफ करते हुए कहा है कि इस केस के दर बाहर बाइक किसने पार्क की थी, पत्थरबाजी किसने की थी, और आखिर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया किसने था, इन सभी बातों को लेकर अभी तक कोई भी पुख्ता सबूत हासिल नहीं हो पाया है।
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टूटी हुई सीडी बनी बड़ी चूक
मालेगांव विस्फोट मामले की सुनवाई के दौरान एक अहम सबूत के रूप में मानी जा रही कुछ वीडियो सीडीज अदालत तक सही-सलामत नहीं पहुंच सकीं। इनमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित और अन्य आरोपियों की गुप्त बैठकों के वीडियो फुटेज मौजूद थे, जिन्हें आरोपी और स्वयंभू धर्मगुरु सुधाकरधर द्विवेदी ने चोरी-छिपे रिकॉर्ड किया था। लेकिन कोर्ट में पेश किए जाने से पहले ही ये सीडी टूटी हुई हालत में मिलीं। चौंकाने वाली बात यह रही कि न तो इनकी मरम्मत की कोई कोशिश हुई और न ही उनकी बैकअप कॉपी सुरक्षित रखी गई।
कॉल इंटरसेप्शन और CDR को बनाया गया सबूत का आधार
हालांकि, केस की जांच बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई थी, लेकिन सातों आरोपियों की गिरफ्तारी पहले महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने की थी। कोर्ट में पेश NIA के विशेष लोक अभियोजक अविनाश रसाल ने दावा किया कि उन्होंने आरोपियों के कॉल डेटा रिकॉर्ड (CDR), और साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बाद अक्टूबर 2008 में हुई कॉल इंटरसेप्शन के आधार पर केस को आगे बढ़ाया। इन कॉल्स में आरोपियों के आपसी संवाद दर्ज थे, जिन्हें सबूत के तौर पर पेश किया गया। इसके अलावा कुछ अन्य तकनीकी और परिस्थितिजन्य सबूत भी कोर्ट में दिए गए, हालांकि उनका प्रभाव अंतिम निर्णय पर सीमित ही रहा।