Raksha Bandhan 2025 : रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा को उजागर करने वाला एक पवित्र आध्यात्मिक बंधन है। यह त्योहार सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते की मिठास को नहीं दर्शाता, बल्कि धर्म, आत्मिक सुरक्षा और जीवन मूल्यों की रक्षा का प्रतीक भी है।
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व उस समय आता है जब आध्यात्मिक ऊर्जा और ईश्वरीय अनुग्रह विशेष रूप से सक्रिय माने जाते हैं। ‘रक्षा’ का अर्थ केवल बाहरी संकटों से सुरक्षा नहीं है, बल्कि आत्मा की शुद्धता, सद्गुणों की रक्षा और जीवन की मर्यादाओं को बनाए रखने का भी संकल्प है।
विश्वास और आत्म-स्मृति का अदृश्य धागा
जब बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है, तो वह केवल सुरक्षा की याचना नहीं करती, बल्कि एक गहरा विश्वास प्रकट करती है – “मैं तुझ पर भरोसा करती हूं।” यही भरोसा भाई को भीतर से सशक्त करता है, उसे प्रेरित करता है कि वह न सिर्फ बहन की रक्षा करे, बल्कि अपने भीतर की कमजोरियों से भी विजयी बने।
यह भी पढ़ें : ये 5 बॉलीवुड सितारे लगते हैं रिश्ते में भाई-बहन, क्या आप भी…
तिलक केवल एक शुभ चिह्न नहीं है; यह आत्मा की पहचान, चेतना की स्मृति और जीवन के ऊंचे लक्ष्य की याद है। मिठाई खिलाना केवल एक रस्म नहीं, बल्कि यह कामना है कि भाई का स्वभाव और व्यवहार जीवन भर मधुर और संतुलित बना रहे।
इतिहास से आती प्रेरणा है सार्वभौमिक
रक्षा बंधन का दायरा केवल खून के रिश्तों तक सीमित नहीं है। इतिहास में माता लक्ष्मी द्वारा राजा बलि को राखी बांधना और द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को राखी बांधना इस बात का प्रमाण है कि यह बंधन मानवता, कर्तव्य और आत्म-सम्मान से जुड़ा होता है।
राखी का यह सूत्र एक दिव्य स्मरण है कि हर मनुष्य, चाहे वह किसी भी संबंध में क्यों न हो, दूसरों के आत्म-सम्मान, मर्यादा और आध्यात्मिक कल्याण की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध हो सकता है।