Noida Municipal Corporation: नोएडा में चुनी हुई स्थानीय सरकार की मांग अब जोर पकड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वह न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (NOIDA) को एक नगर निगम बनाने पर विचार करे। फिलहाल, नोएडा देश का इकलौता बड़ा शहर है जहां कोई मेयर या पार्षद नहीं चुने जाते। यहां सारा काम नोएडा अथॉरिटी के हाथों में है, जो वास्तव में विकास और जमीन अधिग्रहण से जुड़े काम के लिए बनी थी। लेकिन यह नागरिकों की रोजमर्रा की जरूरतें भी संभाल रही है। अगर निगम बनता है तो नागरिकों को चुने हुए प्रतिनिधि मिलेंगे, जो सीधा जनता से जवाबदेह होंगे। सवाल यह है कि नोएडा नगर निगम बनने से शहरवासियों को क्या बड़े फायदे होंगे?
नोएडा की मौजूदा स्थिति
Noida 1976 में आपातकाल के दौरान उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट एक्ट के तहत अस्तित्व में आया था। उस समय इसे एक औद्योगिक टाउनशिप के रूप में तैयार किया गया था, ताकि दिल्ली से उद्योगों को बाहर लाया जा सके। वर्तमान में नोएडा अथॉरिटी इसके विकास और प्रशासनिक काम देखती है। इसके तहत 81 गाँव और करीब 20,316 हेक्टेयर भूमि आती है। एक आईएएस अधिकारी बतौर CEO यहां कामकाज संभालता है। समस्या यह है कि अथॉरिटी केवल योजनाओं और विकास के लिए बनी थी, लेकिन यह आज सफाई, कचरा प्रबंधन, सीवरेज और नागरिक सुविधाओं तक का जिम्मा उठा रही है।
दूसरे शहरों से अलग क्यों है नोएडा?
भारत के अन्य बड़े शहरों में अलग-अलग निकाय होते हैं। जैसे दिल्ली में MCD नागरिक सेवाओं का ध्यान रखती है और DDA योजना बनाती है। मुंबई में BMC नागरिक सुविधाएं देखती है और MMRDA विकास योजनाएं तैयार करती है। लेकिन नोएडा में दोनों जिम्मेदारियां एक ही अथॉरिटी निभा रही है। यही वजह है कि पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी दिखाई देती है। अगर नगर निगम बनता है तो नोएडा अथॉरिटी के कई काम नगर निगम को सौंपे जाएंगे और लोग चुने हुए पार्षदों और मेयर से अपनी शिकायतें और जरूरतें सीधे रख सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और SIT की रिपोर्ट
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के कामकाज पर सवाल उठाते हुए SIT की रिपोर्ट का हवाला दिया। इस जांच में अथॉरिटी में गंभीर खामियां और अनियमितताएं सामने आईं। मामला दो अधिकारियों की जमानत याचिका से जुड़ा था, जिन पर गलत तरीके से मुआवजा देने का आरोप था। कोर्ट ने यूपी सरकार को सुझाव दिया कि शहर के लिए बेहतर शासन प्रणाली के रूप में नगर निगम का गठन किया जाना चाहिए।
नगर निगम और महानगर परिषद की अहमियत
1992 के 74वें संविधान संशोधन ने नगर निकायों को तीसरे स्तर की सरकार का दर्जा दिया। इसके तहत 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में नगर निगम बनना चाहिए। नोएडा ने 2010 में ही यह सीमा पार कर ली थी। नगर निगम होने का मतलब है कि शहर को चुना हुआ मेयर और पार्षद मिलेंगे। वे स्वास्थ्य, सफाई, स्ट्रीट लाइट, पार्क, सार्वजनिक सुविधाएं और कचरा प्रबंधन जैसे सीधे नागरिक मुद्दों को संभालेंगे। इससे शासन ज्यादा जवाबदेह और पारदर्शी होगा।
लोगों को क्या फायदे होंगे?
- चुनी हुई स्थानीय सरकार – नोएडा को मेयर और पार्षद मिलेंगे, जो जनता से सीधे जुड़ेंगे।
- पारदर्शिता और जवाबदेही – नौकरशाही पर निर्भरता घटेगी और स्थानीय जरूरतों को प्राथमिकता मिलेगी।
- बेहतर शहरी सेवाएं – कचरा, सीवरेज, पानी, स्वास्थ्य और पार्कों का प्रबंधन निगम के जिम्मे होगा।
- लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व – लोग अपनी आवाज सीधे चुने हुए प्रतिनिधियों तक पहुंचा सकेंगे।
- शहरी गरीबों के लिए सहारा – विशेषज्ञों के मुताबिक, निगम बनने से वंचित वर्गों की आवाज ज्यादा मजबूती से सुनी जाएगी।
पहले भी उठी थी मांग
2017 में गौतमबुद्धनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी बीएन सिंह ने सुझाव दिया था कि Noida अथॉरिटी से नागरिक सेवाओं का काम लेकर एक अलग नगर निगम बनाया जाए। लेकिन उसी वर्ष नोएडा और ग्रेटर नोएडा की अथॉरिटीज ने इसे खारिज कर दिया। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में दबाव बनाया है, तो उम्मीद जगी है कि जल्द ही नोएडा में भी चुनी हुई स्थानीय सरकार बनेगी।
Noida देश का एक प्रमुख शहरी और औद्योगिक केंद्र है, लेकिन यहां आज भी लोकतांत्रिक स्थानीय शासन का अभाव है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इस दिशा में नई बहस छेड़ दी है। अगर नगर निगम बनता है तो नोएडा न केवल शहरी सेवाओं में सुधार देखेगा, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत करेगा। नागरिकों को मेयर और पार्षद के रूप में अपने प्रतिनिधि मिलेंगे और शहर का भविष्य और ज्यादा सुनियोजित व पारदर्शी बन सकेगा।