नई दिल्ली ऑनलाइन डेस्क। बेमौसम बारिश और सूखा जैसे हालात पिछले डेढ़ दशक से इंसान से लेकर बेजुबानों को उठाने पड़ रहे हैं। अब प्रकृति की मार पहाड़ों में भी देखने को मिली रही है। हाल के दिनों में हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ है। कुदरत के बवंडर ने इन इलाकों में भयंकर तबाही मचाई हुई है। उत्तराखंड के धराली से लेकर हिमाचल के मंडी और जम्मू-कश्मीर के कठुआ-किश्तवाड़ में आमलोग प्राकृतिक आपदा से जूझ रहे हैं। ऐसे में हम आपको बताते हैं कि क्यों कुदरत कहर ढा रहा है और किस वजह से पहाड़ों पर बादल फट रहे हैं।
क्या है बादल फटने की कहानी
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे ज़्यादा बारिश किसी एक बहुत छोटी जगह पर होने की स्थिति को बादल फटना कहा जाता है। यह पहाड़ों पर ज़्यादा होता है। क्योंकि पहाड़ बादलों को ऊपर धकेलते हैं, जिससे वे तेज़ी से ठंडे होते हैं और पानी की बूंदें बहुत बड़ी हो जाती हैं और वही एक साथ नीचे गिरकर तबाही मचाती हैं। यह बारिश बहुत तेज़ होती है, जिससे अचानक बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है। अचानक जमीन पर गिर यही पानी तेज रफ्तार से रास्ते में पड़ने वाले पेड़-पौधे, घर, पत्थर के साथ ही रास्ते में जो कुछ भी पड़ता है, उसे लेकर नीचे की ओर रास्ता बनाते हुए निकलता है। रफ्तार ऐसी कि किसी को संभलने का मौका नहीं देता।
इसे ही क्लाउड-बर्स्ट कहते हैं
मौसम वैज्ञनिक बताते हैं कि जुलाई और अगस्त के सीज़न में नमी बहुत ज्यादा है, पहाड़ों पर बादल बनने की रफ्तार इसी वजह से तेज है। इसीलिए छोटे-छोटे कैचमेंट एरिया में बादल आंधी-तूफानी बादल 100 मिमी प्रति घंटा या उससे भी ज्यादा पानी गिरा रहे हैं। मौसम वैज्ञानिक इसे ही क्लाउड-बर्स्ट कहते हैं। क्लाउड-बर्स्ट बहुत छोटे क्षेत्र में और बहुत कम समय में होता है। ऐसे में जब ऐसी घटना किसी आबादी वाले इलाके में होती है तो जन-धन की हानि बड़े पैमाने पर होती है। जहां आबादी नहीं है, वहां बादल फटकर निकल जाता है। चूंकि बादल फटने की घटनाएं बारिश के मौसम में ही होती हैं, इसलिए मान लिया जाता है कि पहाड़ों पर ज्यादा बारिश हुई है, इसी वजह से नदियों-गदेरों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है।
क्यों आता है फ्लैश फ़्लड
इस मानसून में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य राज्यों में अलग-अलग कई घाटियों में बादल फटे हैं। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भारी तबाही मचाने वाली घटना को मौसम विभाग ने फ्लैश फ़्लड या क्लाउड-बर्स्ट का दर्जा दिया है। शुरुआती वैज्ञानिक जांच में क्लाउड-बर्स्ट, ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड, लैंडस्लाइड-जैम, या इनका मिश्रण माना जा रहा है। क्लाउड-बर्स्ट से सिर्फ पानी नहीं आत। ऊपर की ढालों से मिट्टी, बोल्डर, लकड़ी, ग्लेशियर-मोराइन की गाद सब साथ-साथ बहते हुए आगे बढ़ता है। यह पानी को डेब्रिस-फ्लो बना देता है, जिसकी रफ्तार और मारक क्षमता बहुत अधिक होती है। गांव स्तर पर सटीक क्लाउड-बर्स्ट भविष्यवाणी बहुत कठिन है। इसके पीछे कारण यह है कि बादल बहुत छोटे इलाके में ही फटते हैं।
मंडी -धराली में तबाही
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि पेड़ों की कटाई से मिट्टी कमजोर हो गई है, जो मलबे के साथ बहती है। सड़क निर्माण और बस्तियों का अंधाधुंध विस्तार पानी के प्राकृतिक बहाव को बाधित करता है। गर्म और ठंडी हवाओं का मिलना भी बादल फटने को बढ़ाता है। बता दें, 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई। चंद मिनटों में मलबा और पानी ने घर, दुकानें और सड़कें बहा दीं। दर्जनों लोगों की मौत हुई. 100 से ज्यादा लापता हैं। यह गांव गंगोत्री यात्रा का रास्ता होने के कारण तीर्थयात्रियों का पड़ाव था। हिमाचल के मंडी जिले में जुलाई से अब तक कई बार बादल फटे। 17 अगस्त को द्रंग, बथेरी और उत्तरशाल में मूसलाधार बारिश ने घर, गौशालाएं और सड़कें नष्ट कीं।
किश्तवाड़-कठुआ में प्रकृति का कहर
14 अगस्त 2025 को किश्तवाड़ के चशोती गांव में मचैल माता यात्रा के दौरान बादल फटने से बाढ़ आई। दर्जनों घर और दुकानें बह गईं. 60 से ज्यादा लोग मरे। 200 से ज्यादा लापता हैं। कठुआ में भी भारी बारिश ने नदियों को उफान पर ला दिया। बताया जा रहा है कि कठुआ में सात से अधिक लोगों की मौत हो गई। लाखों का नुकसान भी हुआ है। मौसम विभाग के मुताबिक, पहाड़ी इलाकों में बादल फटना आम है। क्योंकि हवाएं और भूगोल का मेल ऐसा माहौल बनाता है। ग्लेशियर झीलों के फूटने से भी बाढ़ आ सकती है, लेकिन सैटेलाइट डेटा की कमी से पक्का पता नहीं चल पा रहा। पर्यावरणविद् कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों ने इस समस्या को बढ़ाया है। मौसम विभाग की चेतावनियों पर ध्यान दें और खतरनाक क्षेत्रों से दूर रहें। नदियों और नालों की सफाई और मजबूत ड्रेनेज सिस्टम बनाएं।