Sambhal report 2025: संभल की मिट्टी खून से लाल है, और हिंदुओं के लिए खतरे की सबसे बड़ी घंटी बज चुकी है। 24 नवंबर 2024 को शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद के सर्वे के दौरान भड़की हिंसा ने वो तस्वीर साफ कर दी, जिसकी आहट दशकों से मिल रही थी। रिपोर्टें बता रही हैं कि यहां की बदलती डेमोग्राफी कोई संयोग नहीं बल्कि सुनियोजित साजिश का नतीजा है। संभल अब एक ऐसा संवेदनशील ज़िला बन चुका है, जहां आतंक की जड़ें गहरी हो चुकी हैं, और हिंदू समुदाय हाशिये पर पहुंच गया है। तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग की 450 पन्नों की रिपोर्ट ने उस सच्चाई से परदा हटा दिया है, जो हर हिंदू के दिल को झकझोरने वाली है।
संभल की बदलती तस्वीर: खतरे की घंटी
Sambhal कभी धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। सड़कों पर, बाजारों में, और प्रशासनिक दफ्तरों तक एक अघोषित सच्चाई साफ दिखती है—यहां की डेमोग्राफी धीरे-धीरे बदली गई। ये बदलाव स्वाभाविक नहीं लगते, बल्कि दशकों से चली आ रही सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हैं।
स्थानीय हिंदू परिवारों का कहना है कि अब वे अपने ही घरों में अजनबी महसूस करते हैं। कई मोहल्लों में जहां कभी हिंदू बहुसंख्यक थे, वहां अब उनका अस्तित्व लगभग मिट चुका है। रिपोर्ट इस बदलाव को अनदेखा नहीं करती और साफ संकेत देती है कि सांस्कृतिक और धार्मिक संतुलन बिगाड़ने की कोशिश लंबे समय से हो रही है।
24 नवंबर की हिंसा: संभल का काला सच
24 नवंबर 2024 का दिन Sambhal की पहचान पर गहरा दाग छोड़ गया। शाही जामा मस्जिद पर ASI के सर्वे के दौरान एक ऐसी आग भड़की, जिसने पूरे शहर को अपनी लपटों में घेर लिया। पुलिस पर पथराव, वाहनों में आगजनी, और गोलियों की आवाज़ें… पूरा संभल दहशत में डूब गया।
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि हिंसा अचानक नहीं थी। स्थानीय सूत्रों का दावा है कि कई बाहरी लोग हिंसा भड़काने के लिए लाए गए थे। वहीं, हिंदू पक्ष का कहना है कि सर्वे सिर्फ सच्चाई सामने लाने का प्रयास था, लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग देकर दंगा भड़काया गया।
इस हिंसा में पांच लोगों की मौत हुई और दर्जनों घायल हुए, जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
हरिहर मंदिर विवाद: आस्था बनाम राजनीति
Sambhal की शाही जामा मस्जिद-हरिहर मंदिर विवाद इस पूरे मामले की जड़ है। हिंदू पक्ष का दावा है कि 16वीं शताब्दी में यहां एक भव्य हरिहर मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया गया। इसी दावे के आधार पर सिविल कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था।
ASI की प्रारंभिक रिपोर्ट में भी कई ऐसे संकेत मिले, जो हिंदू पक्ष की बात को मज़बूत करते हैं। हालांकि, इस सर्वेक्षण ने सांप्रदायिक तनाव को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। मस्जिद पक्ष ने इसे उपासना स्थल अधिनियम, 1991 का उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचाया।
अब विवाद केवल आस्था तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए यह वोट बैंक की लड़ाई में बदल चुका है।
आतंक की जड़ें और रिपोर्ट का बड़ा खुलासा
Sambhal रिपोर्ट का सबसे बड़ा खुलासा ये है कि Sambhal धीरे-धीरे आतंकी गतिविधियों का गढ़ बन चुका है। सूत्रों के अनुसार, कई प्रतिबंधित संगठनों की सक्रिय उपस्थिति यहां देखी गई है। सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसे इनपुट हैं जो बताते हैं कि विदेशी फंडिंग और संगठित नेटवर्क इस क्षेत्र में गहरी जड़ें जमा चुके हैं।
रिपोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि अगर अभी सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह क्षेत्र राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसे लोगों को संरक्षण देने में कुछ राजनीतिक दलों की भूमिका भी रही है, जो तुष्टिकरण की राजनीति के लिए आंखें मूंदे बैठे हैं।
सियासत का खेल: आरोप-प्रत्यारोप की जंग
संभल की हिंसा और विवाद पर सियासत भी जमकर गरमाई हुई है।
- समाजवादी पार्टी (सपा) ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने जानबूझकर सर्वे के जरिए सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ा।
- बीजेपी का पलटवार था कि सपा के नेताओं ने इस पूरे विवाद को भड़काया, ताकि हिंदू पक्ष की आवाज़ दबाई जा सके।
- कांग्रेस ने दोनों दलों पर दोष मढ़ते हुए सिर्फ शांति की अपील की, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक उनकी भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
मूल सवाल यही है — क्या इस विवाद को राजनीतिक फायदे के लिए भुनाया जा रहा है, जबकि संभल के हिंदू अपनी पहचान खोते जा रहे हैं?
हिंदू समाज के लिए चेतावनी
Sambhal की न्यायिक रिपोर्ट केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि हिंदू समाज के भविष्य की चेतावनी है।
अगर आज आंखें नहीं खोलीं, तो कल हिंदू इतिहास सिर्फ किताबों तक सीमित रह जाएगा। संभल की गलियां, मंदिर, और सांस्कृतिक धरोहरें केवल तस्वीरों में दिखाई देंगी।
रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि हिंदू समाज को संगठित होकर अपनी आस्था, परंपराओं और अस्तित्व की रक्षा करनी होगी।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह केवल संभल का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत के लिए एक चेतावनी की घंटी है।