Mayawati Lucknow rally: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती एक बार फिर सक्रिय होती नज़र आ रही हैं। लगातार चुनावी हार से जूझ रही बसपा आगामी 9 अक्टूबर को लखनऊ के कांशीराम स्मारक पार्क में संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर राज्यस्तरीय कार्यक्रम करने जा रही है। इसे महज़ श्रद्धांजलि सभा न मानकर राजनीतिक टेस्टर के रूप में देखा जा रहा है। 2012 के बाद से लगातार कमजोर होती पार्टी अब अपने कैडर की ताकत को परखने के लिए यह आयोजन कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती इस कार्यक्रम के जरिये अपने कोर वोटरों को संदेश देना चाहती हैं कि बसपा अभी भी मैदान में है। विपक्षी दल भी इस रैली पर पैनी नजर बनाए हुए हैं।
नब्ज टटोलने की कवायद
बसपा की राजनीति में बड़े आयोजन हमेशा अहम माने गए हैं। 1984 में गठन के बाद से पार्टी ने रैलियों के जरिये न केवल अपनी ताकत दिखाई बल्कि जमीनी नेताओं को आगे बढ़ाने का काम भी किया। मगर 2012 की हार के बाद से बसपा का जनाधार लगातार खिसकता गया। 2019 में सपा गठबंधन से जरूर 10 सांसद जीताए, लेकिन 2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा में बसपा लगभग सिमट गई। मौजूदा दौर में बसपा लोकसभा में शून्य और विधानसभा में केवल एक विधायक की पार्टी रह गई है। ऐसे में 9 अक्टूबर का आयोजन मायावती के लिए कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने और दलित वोटरों को दोबारा जोड़ने का जरिया माना जा रहा है।
रणनीति और रैली स्थल का संदेश
दिलचस्प बात यह है कि Mayawati ने आयोजन के लिए रमाबाई अंबेडकर मैदान की बजाय कांशीराम स्मारक पार्क को चुना। इसकी क्षमता लगभग एक लाख है। राजनीतिक विश्लेषक सैयद क़ासिम का मानना है कि मायावती जानती हैं कि मौजूदा हालात में उनकी पार्टी के पास न तो बड़े नेता हैं और न ही संसाधन। केवल कैडर ही ताकत है। ऐसे में छोटा लेकिन प्रतीकात्मक स्थल चुनकर वे यह देखना चाहती हैं कि क्या बिना सत्ता-संसाधन भी समर्थक जुट सकते हैं। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो Mayawati 2027 विधानसभा चुनाव से पहले बड़े स्तर पर शक्ति प्रदर्शन कर सकती हैं।
विपक्षी दलों की नजरें
बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल का कहना है कि यह रैली नहीं बल्कि श्रद्धांजलि कार्यक्रम है और इसमें लाखों की भीड़ जुटेगी। लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे बसपा की ताकत मापने का अवसर माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी और भाजपा दोनों इस आयोजन पर नज़र गड़ाए हुए हैं। खासकर तब जब ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद जैसे सहयोगी दल Mayawati और आकाश आनंद की खुलकर तारीफ करने लगे हैं। इससे साफ है कि 9 अक्टूबर का यह आयोजन केवल श्रद्धांजलि भर नहीं बल्कि यूपी की राजनीति में नई हलचल मचाने वाला साबित हो सकता है।