India-Bangladesh : हाल ही में बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद भारत और बांग्लादेश के संबंधों में तनाव साफ़ देखा जा सकता है। जहां एक ओर बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन के करीब जाता दिख रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को लेकर सतर्क हो गया है। इन कूटनीतिक खटासों के बीच एक अहम सवाल उठता है—क्या हिल्सा मछली दोनों देशों को फिर से जोड़ने का एक जरिया बन सकती है?
दुर्गा पूजा से पहले भारत पहुंची ‘हिल्सा’
दुर्गा पूजा से पहले बांग्लादेश से भारत में हिल्सा मछली की पहली खेप सीमा पार कर चुकी है। इस बार करीब 32 टन हिल्सा, आठ ट्रकों के ज़रिए भारत भेजी गई है। बांग्लादेश सरकार ने 16 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच 1,200 टन मछली के निर्यात की अनुमति दी है। इस सप्लाई को पद्मा नदी से लाया गया है, जो अपनी स्वादिष्ट हिल्सा के लिए जानी जाती है। मछली व्यापारियों के अनुसार, एक किलो पद्मा हिल्सा की कीमत बाज़ार में लगभग ₹1,800 रखी गई है। यह मछली जल्द ही कोलकाता और आसपास के थोक बाजारों में उपलब्ध होगी।
क्या है हिल्सा की खासियत ?
हिल्सा को “मछलियों की रानी” कहा जाता है और यह दुर्गा पूजा के समय बंगालियों के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है। खासकर पद्मा नदी से आई हिल्सा का स्वाद भारतीय हिल्सा से बेहतर माना जाता है। यही वजह है कि न सिर्फ पश्चिम बंगाल, बल्कि त्रिपुरा और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसकी खूब मांग है।
2019 के बाद हुआ सबसे कम निर्यात
गौर करने वाली बात यह है कि इस बार बांग्लादेश से आई हिल्सा की मात्रा पिछले छह सालों में सबसे कम है। जहां 2021 में 4,600 मीट्रिक टन मछली भेजी गई थी, वहीं इस बार मात्र 1,200 टन की अनुमति दी गई है। इसकी एक बड़ी वजह बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता मानी जा रही है। अगस्त 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़ना पड़ा और उन्होंने भारत में शरण ली।
यह भी पढ़ें : कौन हैं प्रो. सुनीता मिश्रा ? जिनके औरंगजेब पर बयान…
इसके बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनी, जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ गई। हालांकि 1,200 टन की अनुमति मिली है, लेकिन व्यापारियों को शक है कि इतनी मछली 5 अक्टूबर की समयसीमा से पहले भारत नहीं पहुंच पाएगी। ऐसा पहले भी होता रहा है। उदाहरण के तौर पर, 2024 में 2,420 मीट्रिक टन की अनुमति के बावजूद सिर्फ 577 मीट्रिक टन मछली ही भारत आ सकी थी।
गुजरात बना नया विकल्प
इस बार बांग्लादेश से आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता बनी हुई थी, इसलिए बंगाल के व्यापारियों ने विकल्प के तौर पर गुजरात की ओर रुख किया। जहां हर साल गुजरात से 500-700 मीट्रिक टन हिल्सा आती थी, वहीं इस बार रिकॉर्ड 4,000 मीट्रिक टन से ज़्यादा मछली पहले ही मंगाई जा चुकी है।
इस सवाल का जवाब इतना सीधा नहीं है। हिल्सा मछली निस्संदेह एक सांस्कृतिक पुल का काम कर सकती है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए सिर्फ मछली से रिश्ते सुधारने की उम्मीद करना काफी नहीं होगा। हालांकि, यह जरूर कहा जा सकता है कि अगर व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्राथमिकता दी जाए, तो यह एक शुरुआत हो सकती है।