Land Scam burst in LDA: समाजवादी पार्टी के संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव की समधन अंबी बिष्ट पर जमीन घोटाले का गंभीर आरोप लगा है। सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। मामला लखनऊ विकास प्राधिकरण (लविप्रा) की प्रियदर्शनी/जानकीपुरम योजना से जुड़ा है। इस योजना में भूखंड आवंटन और रजिस्ट्री में गड़बड़ी की शिकायत हुई थी। उसी आधार पर वर्ष 2016 में सरकार ने विजिलेंस जांच का आदेश दिया था। जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए और कई बड़े अफसरों की भूमिका उजागर हुई।
जांच कैसे शुरू हुई
सबसे पहले नजर लविप्रा के तत्कालीन लिपिक स्व. मुक्तेश्वर नाथ ओझा पर पड़ी। उन पर शक हुआ कि भूखंडों के कागजात बदलने में उनकी बड़ी भूमिका है। जांच टीम ने दस्तावेजों के हस्ताक्षरों का मिलान कराया। यह मिलान विधि विज्ञान प्रयोगशाला से करवाया गया। वहां से मिले प्रमाणों ने गड़बड़ी की पुष्टि कर दी।
किन-किन अफसरों का नाम आया
जांच आगे बढ़ी तो कई और अधिकारियों की भूमिका भी सामने आई।
तत्कालीन अनुभाग अधिकारी वीरेन्द्र सिंह के हस्ताक्षर कब्जा पत्रों पर पाए गए।
उपसचिव देवेंद्र सिंह ने आवंटन पत्रों पर हस्ताक्षर किए थे।
संपत्ति अधिकारी अंबी बिष्ट के हस्ताक्षर निबंधन प्रस्ताव और विक्रय विलेख पर मिले।
वरिष्ठ कास्ट अकाउंटेंट और उनके सहायक शैलेन्द्र कुमार गुप्ता ने ओझा के साथ मिलकर भूखंडों की कीमत और गणना फर्जी कागजों के आधार पर तय की।
इस तरह जांच से यह साफ हो गया कि यह काम अकेले किसी एक का नहीं था, बल्कि मिलकर किया गया बड़ा खेल था।
घोटाले का तरीका
पूरी साजिश में भूखंडों के आवंटन में हेरफेर की गई। कई भूखंडों के कागजात बदलकर नए नाम दर्ज किए गए। उसके बाद रजिस्ट्री और पंजीकरण की प्रक्रिया भी फर्जी दस्तावेजों पर की गई। इस खेल से नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं और सरकारी संपत्ति में गड़बड़ी की गई।
विजिलेंस की कार्रवाई
जांच के आधार पर विजिलेंस ने अंबी बिष्ट समेत सभी आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर लिया है। आरोप है कि इन लोगों ने मिलकर करोड़ों रुपये का नुकसान कराया। यह मामला अब कानूनी प्रक्रिया में जाएगा और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
प्रियदर्शनी योजना में हुआ यह घोटाला दिखाता है कि किस तरह अफसर और कर्मचारी मिलीभगत से सरकारी योजनाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। अब देखना यह होगा कि जांच के बाद कोर्ट में क्या कदम उठाए जाते हैं।