Azam Khan Return: अक्तूबर 2023 में जेल जाने के बाद आजम खान ने न सिर्फ अपने विरोधियों को चुनौती दी, बल्कि सलाखों के पीछे रहकर भी यूपी की राजनीतिक हलचल को प्रभावित किया। उनका कद कम नहीं हुआ, और उनकी रिहाई के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया उबाल आने की संभावना है। रामपुर समेत आसपास के जिलों में आजम का सियासी रसूख बेहद गहरा है। सपा के अंदर भी उनके निर्णय से प्रत्याशियों के चयन में असर पड़ा है, जो लखनऊ से नहीं बल्कि आजम के कार्यालय से तय होते रहे हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि Azam Khan की रिहाई के बाद उनके अगले कदम पर सभी दलों की निगाहें टिकी हैं। राजनीतिक गलियारों में अटकलें तेज हैं कि क्या आजम सपा में रहेंगे या बसपा की ओर रुख करेंगे। जेल में रहते हुए उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे पैदाइशी समाजवादी हैं, लेकिन राजनीतिक रणनीति बदल सकती है।
बसपा की पेशकश और राजनीतिक प्रभाव
बहुजन समाज पार्टी ने आजम खान को पार्टी में शामिल होने के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। विधायक उमाशंकर सिंह के अनुसार, आजम को पार्टी में शामिल होने पर बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। ऐसा होने पर पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट करने में बसपा को फायदा मिलेगा। इससे सपा की पीडीए फॉर्मूला कमजोर हो सकती है।
हालांकि, मायावती या आजम खुद ही इस निर्णय की आधिकारिक पुष्टि करेंगे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बसपा का यह कदम 2027 के विधानसभा चुनावों में अहम साबित हो सकता है, खासकर मुस्लिम-दलित गठजोड़ को मजबूत करने के संदर्भ में।
एसटी हसन का बयान: “दिल नहीं चाहता”
पूर्व सांसद एसटी हसन ने खुलासा किया कि Azam Khan की रिहाई से उन्हें व्यक्तिगत रूप से खुशी है, लेकिन दिल नहीं चाहता कि वे उनसे मिलें। उन्होंने कहा, “अगर उनका हुक्म होगा तो जरूर जाऊंगा। सच्चाई यह है कि मेरे ऊपर जो हालात आए, उसमें आजम खान की भूमिका रही।”
एसटी हसन ने यह भी स्पष्ट किया कि आजम का सपा छोड़कर बसपा में जाने की संभावना सिरे से नकारते हैं। उनका कहना है कि आजम पैदाइशी समाजवादी हैं और उन्होंने पार्टी के लिए अपना जीवन समर्पित किया है।
उन्होंने स्वीकार किया कि अगर आजम बसपा में शामिल होते हैं तो सपा को थोड़ी बहुत नुकसान जरूर होगा, लेकिन मुसलमान किसी एक नेता की वजह से सपा से नहीं हटेंगे। हालांकि, रामपुर और आसपास के क्षेत्रों में उनका प्रभाव वोट बैंक पर असर डाल सकता है।
राजनीतिक भविष्य और निष्कर्ष
Azam Khan की रिहाई के साथ यूपी की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है। उनके कदम केवल सपा के लिए नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी यूपी के राजनीतिक परिदृश्य के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। चाहे वह सपा में बने रहें या बसपा का दामन थामें, उनके फैसले से मुस्लिम वोट बैंक, प्रत्याशी चयन और पार्टी गठजोड़ पर गहरा असर पड़ेगा।
सपा के भीतर भी यह समय चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि अब हर नेता और कार्यकर्ता अपने राजनीतिक भविष्य की रणनीति पर ध्यान दे रहा है। ऐसे में आजम खान की रिहाई यूपी की राजनीति में नए समीकरणों और संभावनाओं की शुरूआत का संकेत देती है।